लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर एसोसिएशन की आपात बैठक फील्ड होस्टल कार्यालय में संपन्न हुई। पदाधिकारियों ने कहा कि दलित अभियंताओं को निदेशक पद से रोकने के लिए कुछ आरक्षण विरोधी तत्व प्रबंधन के साथ मिलकर दलित अभियंताओं की पदोन्नति को बाधित करने में लगे हैं। अनेकों ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिसमे दलित अभियंताओं के 25 साल पुराने मामलों को खोलकर उनका लिफाफा बंद कराया जा रहा है। जबकि आज तक न उनसे स्पष्टीकरण लिया गया और न कोई चार्ज सीट दी गई।
बैठक में सर्वसम्मत से बिजली निगम में 17 निदेशकों के पद की अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष किए जाने पर व्यापक विरोध करने का निर्णय लिया गया। संगठन ने उत्तर प्रदेश सरकार से पुरजोर मांग की है कि इसकी जांच करायी जाय। एकाएक ऐसी क्या स्थिति आ गई की निदेशकों के चयन की अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष निर्धारित कर दी गई। जबकि इसके पहले एपी मिश्रा के मामले में सरकार बनते ही मुख्यमंत्री ने वह निर्णय वापस लिया था। जिसमें सपा सरकार ने एपी मिश्र की अधिकतम आयु सीमा 65 वर्ष की थी।
पदाधिकारियों ने कहा कि पदोन्नति के समय दलित अभियंताओं के मामले में जांच व अनुशासनात्मक कार्यवाही के मामलों पर कार्यवाही नहीं होती हैं। लेकिन जब कुछ अभियंताओं को जल्दबाजी में प्रोन्नत करना था तो कुछ ही समय में उनकी सभी जांच खत्म कर दी गई। यदि 2 वर्षो में पदोन्नति के पहले जांच खत्म करने की उच्च स्तरीय जांच हो तो बड़ा खुलासा होगा।
उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर एसोसिएशन के अध्यक्ष केबी राम, कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, उपाध्यक्ष पीएम प्रभाकर, महेंद्र सिंह, महासचिव अनिल कुमार, सचिव आरपी केन, संगठन सचिव सुशील वर्मा, पीएन प्रसाद, झबू राम, अशोक प्रभाकर ने कहाकि बहुत जल्द संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री व अनुसूचित जाति जनजाति आयोग से मुलाकात करेगा। उन्हें यह बताएगा कि जब उत्तर प्रदेश में हडताल हुई थी उस दौरान दलित वर्ग के अभियंताओं ने चार घंटे अधिक काम करके पूरे प्रदेश की विद्युत व्यवस्था को बनाए रखा और वर्तमान में येन केन प्रकरण उनका उत्पीडन किया जा रहा है। पिछले 2 वर्षों के कार्यकाल में बिजली निगम में दलित कार्मिकों के मामले में एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर जांच कर ली जाए तो चाहे निलंबन का मामला रहा हो, चाहे स्थानांतरण, चार्जसीट देने, उनकी जांच करने, उन्हें किसी मामले में दंड दिए जाने का मामला रहा हो सभी में यह स्थिति सामने आएगी कि ज्यादातर मामलों में उनके साथ भेदभावपूर्ण कार्यवाही की गई है।