लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ में यूरोलॉजी और यूरो-ऑन्कोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने एक जटिल ट्यूमर रिडक्शन सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम देकर माता-पिता और बच्चे को उम्मीद की किरण दी।
चार साल की खुशी (बदला हुआ नाम) को जब पूछा गया कि उसे सबसे ज्यादा खुशी किस बात से मिलती है, तो उसे ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं पड़ी। वह विल्मस ट्यूमर के अंतिम चरण के कारण होने वाले दर्द के बावजूद कमजोर आवाज में कहती है, “पार्क और माँ-बाबा के साथ खेलना।” यह एक दुर्लभ और आक्रामक प्रकार का गुर्दे का कैंसर है जो ज्यादातर 3-5 साल के बच्चों को प्रभावित करता है।
खुशी को गुर्दे के कैंसर का पता देर से चला, तब तक ये बीमारी उनकी एक किडनी से काफी आगे फैल चुकी थी। भारत के कई शीर्ष कैंसर संस्थानों ने इसे ऑपरेशन के लिए अनुपयुक्त माना। कैंसर का फैलाव खुशी के पेट के लगभग एक तिहाई हिस्से तक हो चुका था। यह महत्वपूर्ण रक्त वाहिकाओं के साथ जुड़ा चुका था, जिनमें इनफिरियर वेना कावा (आईवीसी), एक तरफ गुर्दे की धमनी (रिनल आर्टरी) और दूसरी तरफ गुर्दे की शिरा (रिनल वेन), उनका लिवर और यहाँ तक कि फेफड़े भी शामिल थे। इस आक्रामक ट्यूमर के कारण खुशी को तीव्र पेट दर्द, उल्टी और कैशेक्सिया की समस्या हो रही थी। यह एक जटिल मेटाबोलिक समस्या है जिसमें भूख न लगना, कुछ खा न पाना, मांसपेशियों का क्षरण और इंसुलिन प्रतिरोध भी शामिल होता है।
निराशाजनक राय देने वाली अन्य मेडिकल संस्थानों से निराश, खुशी के माता-पिता अपनी बेटी को मेदांता लखनऊ ले आए। भावुक पिता ने कहा “अपने बच्चे को दर्द में कौन छोड़ सकता है? हम अपनी बेटी को यथासंभव बेहतर जीवन जीने में मदद करने के लिए सभी चुनौतियों को पार करने के लिए तैयार थे।” यहां उनकी मुलाकात मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. हर्षवर्धन अत्रेय से हुई, जिन्होंने अपने परामर्श से आशा की एक किरण जगाई।
डॉक्टर अत्रेय ने बताया, “विल्म्स ट्यूमर सहित सभी तरह के कैंसरों में शुरुआती पहचान बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस बीमारी का पता चलने पर अगर सही इलाज किया जाए तो ज्यादातर बच्चे बच सकते हैं। हालांकि, स्टेज 4 में पूरा ट्यूमर ठीक करना मुश्किल होता है, लेकिन ऑपरेशन करके ट्यूमर के फैलाव को कम किया जा सकता है, जिससे बच्चे की जीवनशैली में काफी सुधार हो सकता है।”
डॉक्टर अत्रेया के नेतृत्व में चिकित्सीय दल ने खुशी को कीमोथेरेपी दी। इसका उद्देश्य बच्ची के शरीर में ट्यूमर के भार को कम करना और उनके साइटोरेडक्टिव सर्जरी में संभावित जटिलताओं को कम करना था। इस प्रक्रिया का लक्ष्य ट्यूमर के आकार और वजन को यथासंभव कम करना है, जिससे टारगेटेड रेडिएशन और एडिशनल कीमोथेरेपी जैसे बाद के उपचार रोगी को असुविधा को कम करने और उनके जीवनकाल को बढ़ाने में सहायक हो सकें।
मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ में यूरोलॉजी के एसोसिएट डायरेक्टर, डॉ मयंक मोहन अग्रवाल के नेतृत्व में हुई इस जटिल पेडियाट्रिक सर्जरी की योजना में विभिन्न विशेषज्ञों का असाधारण सहयोग शामिल था। जो जटिल बाल रोग के मामलों को संभालने की व्यापक क्षमता को दर्शाता है। यूरो-ऑन्कोलॉजी, कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी, लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी और इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी की विशेषज्ञता, जोखिम भरे ऑपरेशन की योजना बनाने में महत्वपूर्ण थी। इसमें शामिल थे: सर्जरी से तुरंत पहले किडनी के रक्त प्रवाह को तुरंत पहले बंद करना, लिवर के रक्त प्रवाह को सुरक्षित रखते हुए कैंसर प्रभावित आईवीसी को हटाना और कैंसर के थक्कों को दिल में जाने से रोकना।
खुशी का इलाज करने वाले सर्जन डॉ. मयंक मोहन अग्रवाल, “सफलतापूर्वक ट्यूमर को मिल रही ब्लड सप्लाई को रोकने के बाद, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी और यूरो-ऑन्कोलॉजी विभागों की सर्जिकल टीमों ने 5 घंटे तक चलने वाली एक जटिल सर्जरी का सफलतापूर्वक अंजाम दिया। हम गुर्दे के आसपास के ट्यूमर को पूरी तरह से लिम्फ नोड्स और पूरी आईवीसी सहित निकालने में सफल हुए, इस दौरान, लीवर की रक्त आपूर्ति को बनाए रखा गया।। इंट्राऑपरेटिव अल्ट्रासाउंड और रक्त प्रवाह प्रबंधन जैसी उन्नत तकनीकों के इस्तेमाल से रक्त की न्यूनतम हानि सुनिश्चित की गई।”
सर्जरी के बाद, खुशी रेडिएशन थेरेपी पर अच्छा रिस्पॉन्स de रही है। खुशी के पिता श्री त्रिपाठी ने कहा, “मेदांता ने हमारी बेटी के साथ अधिक समय बिताने में हमारी मदद की है। हम बहुत आभारी हैं।”
मेदांता द्वारा इस चुनौतीपूर्ण बीमारी का सफल इलाज सकारात्मक परिणाम प्रदान करने की क्षमता यह साबित करती है कि हॉस्पिटल सिर्फ उपचार ही नहीं, बल्कि आशा और जीवन में महत्वपूर्ण सुधार भी प्रदान करने वाला प्रमुख हेल्थ सर्विस प्रोवाइडर है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा, “हालांकि किसी भी स्थिति को लेकर अत्यधिक चिंता करना या नकारात्मक सोचना ठीक नहीं है, लेकिन आपके बच्चे के लगातार पेट दर्द, पेशाब में खून आना या भूख में अचानक कमी को नजरअंदाज करना भी सही नहीं है। शुरुआती निदान बेहद महत्वपूर्ण है।” उन्होंने आगे बताया, “अल्ट्रासाउंड एक सुरक्षित और आसानी से उपलब्ध इमेजिंग टेस्ट है, जो इस बीमारी का पता लगाने में मदद कर सकता है। डॉक्टर्स को बच्चों में लगातार पेट संबंधी शिकायतों के लिए प्राथमिक जांच के रूप में अल्ट्रासाउंड पर विचार करना चाहिए।”