– अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)
फूलों का स्वभाव होता है खुद के साथ ही साथ अपने आसपास के वातावरण को भी महकाना और अपनी महक से सराबोर कर देना हर उस शख्स को, जिसने इसे छुआ है। फूलों से बने इत्र में खूबियाँ और भी बढ़ जाती हैं। बात महक की चली है, तो इसी पर आगे बढ़ते हैं। क्या महक का नाता सिर्फ फूलों और इत्र से ही है? मेरे मायने में नहीं, क्योंकि शिक्षित व्यक्ति भी गुण यही रखता है। जी हाँ, उसका स्वभाव भी बिल्कुल ऐसा ही होता है। शिक्षा रुपी उसकी महक जितने लोगों को छूती है, सभी को महकाती चली जाती है।
शिक्षा और इत्र, दोनों ही अपने भीतर खूब खूबियाँ लिए हुए होते हैं। जब भी हम इन दोनों के बारे में सोचते हैं, तो सबसे पहले ख्याल आता है व्यक्ति की संवेदनशीलता और सजीवता का। इत्र, जो अपनी खुशबू से वातावरण को जो महका दे और उसे जीवंत बना दे, और शिक्षा वह, जो व्यक्ति की विचारधारा में बदलाव ले आए।
इसलिए शिक्षा की तुलना इत्र से करना कतई गलत नहीं होगा, जो अकेले दम पर पूरे समाज को महकाने का हुनर रखती है। यह इत्र सबसे महँगा है, जो किसी को मिल जाए, तो धन्य हो जाए पाने वाला भी और बाँटने वाला भी। ध्यान देने वाली बात यह है कि शिक्षा के मायने को लोग सिर्फ पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया से जोड़कर देखते हैं, लेकिन शिक्षा के मायने सिर्फ पढ़ाई-लिखाई तक ही सीमित नहीं हैं यानि अक्षरों या शब्दकोशों की समझ होना ही शिक्षा लेने की परिभाषा नहीं है, बल्कि मानवीय मर्म या कर्म को समझना ही वास्तव मे शिक्षित होना है। अच्छे संस्कार, अच्छी आदतें, किसी के काम आने का भाव, और यहाँ तक कि किसी को जीवन के लिए अच्छी सीख देना भी तो शिक्षा का ही रूप है।
फिर यह भी जरुरी नहीं कि शिक्षित व्यक्ति ही हमें शिक्षा दे। कई बार जाने-अनजाने में अनपढ़ लोग भी हमें बहुत कुछ सिखा देते हैं। यह बात और है कि उनसे मिली हुई सीख को हम कभी सीख मानते ही नहीं हैं, क्योंकि हम में अहम् भाव कूट-कूटकर भरा हुआ है, यानि हम खुद को उनसे बड़ा मानते हैं। जीव तो कभी शिक्षा अर्जित नहीं करते, फिर भी ये हमें शिक्षित कर देते हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि इसे अर्जित करने की समझ हम में कितनी है। छोटी-सी मड़की हमें जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा देती है। वह जाला बनाने के दौरान बार-बार गिरती है, लेकिन थकती नहीं है और उतनी ही शिद्दत के साथ फिर दीवार के सहारे ऊपर चढ़ती है और फिर उसी जुनून के साथ जाला बुनने लगती है। यह सिलसिला तब तक चलता रहता है, जब तक कि उसका जाला पूरी तरह बनकर तैयार नहीं हो जाता। हम में से अधिकांश लोगों में इस महँगे इत्र की महक ग्रहण करने की क्षमता का क्ष भी नहीं है।
कभी नन्हीं-सी चींटी को एक जगह बैठे हुए देखा है? वह भी हमें कभी न रुकने और हमेशा अपनी राह पर आगे बढ़ते रहने की शिक्षा देती है। एक बात और, चींटियाँ अपने वजन से 10-50 गुना अधिक वजन उठा सकती हैं। इस नन्हें जीव की यह खूबी हमें सिखाती है कि भार सिर्फ और सिर्फ हमारे मन का, हमारी विचारधारा का है, शरीर की संरचना या वजन का इससे कोई लेना-देना नहीं है। क्या चींटी का यह गुण महकता इत्र नहीं है?
अंडे देने का समय नज़दीक आते ही नन्हीं-सी चिड़िया तिनका-तिनका बटोर कर घोंसला बनाने की प्रक्रिया में जूट जाती है। उसकी छोटी-सी चोंच में एक बार में एक ही तिनका आ पाता है, क्या इस बात की जानकारी उसे नहीं होती? बेशक होती है, फिर भी वह घबराती नहीं है और सैकड़ों बार उड़ान भरकर तिनके की तलाश में निकल पड़ती है, और तब तक तिनके बिनती रहती है, तब तक उसका घोंसला सबसे मजबूत स्थिति में नहीं आ जाता। इस इत्र की महक ने आपको महकाया या नहीं?
यह सबसे महँगा इत्र है, जिसकी खुशबू से सराबोर होने के लिए हमें एक रुपया भी खर्च नहीं करना पड़ता। लेकिन, वह कहते हैं न कि मुफ्त में मिला ज्ञान भी हर किसी को रास नहीं आता।
थ्री इडियट्स के इस फेमस डायलॉग से भी हमें यही समझाने की कोशिश की गई है:
“चारों तरफ ज्ञान बट रहा है, जहाँ से मिले लपेट लो”
ज्ञान लेने के लिए स्कूल की भारी-भरकम फीस भरने ही जरुरत थोड़ी न है, जो भी स्कूल पसंद है, उसकी यूनिफॉर्म खरीदो और जितना हो सके, ज्ञान बटोर लो..
इस ज्ञान को गंभीरता से लेकर उसे अपने जीवन में उतारना सिर्फ हम पर ही निर्भर करता है।
(अतुल मलिकराम लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार हैं और ये उनके अपने विचार हैं)