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लोकतांत्रिक, समरस समाज के निर्माण में कबीर का महत्वपूर्ण योगदान : प्रो. कृष्ण कुमार सिंह

हिंदी विश्वविद्यालय में कबीर जयंती पर ‘संत कबीर का अवदान’ विषय पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी

वर्धा (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के साहित्य विद्यापीठ द्वारा 22 जून को तुलसी भवन के महादेवी सभागार में ‘संत कबीर का अवदान’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि कबीर एक असाधारण रचनाकार थे। भारत के मन-मिजाज को समझने के लिए जिन संतों को जानना जरूरी है उनमें कबीर दास अग्रणी हैं। लोकतांत्रिक एवं समरस समाज के निर्माण में कबीर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि कबीर का चिंतन और काव्य आज भी दिशा-दर्शक है।


संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर आभासी माध्यम से संबोधित करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के निदेशक प्रो. सुनील कुलकर्णी ने कहा कि प्रादेशिकता, भाषाई अस्मिता और भारतीय एकात्मता पर आज प्रश्न चिन्ह खड़ा है, ऐसे समय में कबीर के साहित्य की प्रासंगिकता पर विचार करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। उन्होंने कबीर को प्रमुखता से उद्धृत करते हुए उनके सकारात्मक आयाम पर बात करने की सलाह दी। उन्होंने कबीर की महत्ता को स्वीकार करने पर जोर दिया कि आज के जीवन और जिजीविषा से जुड़े हर तरह के सवाल का सामना कबीर के यहाँ दिखाई पड़ता है। सभी समस्याओं का निदान कबीर के साहित्य में उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि कबीर के अवदान के सभी आयामों को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने और समझने की और इसका पुनर्मूल्यांकन करने की जरूरत है।


विशिष्ट वक्ता के रूप में संत कबीर समाज स्थली, मगहर के महंत विचार दास ने कहा कि हम कबीर की 626वीं जयंती मना रहे है। कबीर साहब का व्यापक व्यक्तित्व व उनकी पहुँच सामान्य जन, मजदूर, किसान तक है। कबीर साहब की छाप किसी न किसी रूप में हमारे भीतर है। कबीर का बीजक ग्रंथ उनके प्रतिनिधि ग्रंथ में है। कबीर साहब ने जब बीजक शुरू किया तो उसमें रमैनी के प्रारंभ में अंतरज्योति शब्द का प्रयोग किया। कबीर ने बीजक में वस्तुनिर्देशात्मक वंदना की है। जिस चीज की हमें जरूरत है, उसे प्राप्त करने से ही समस्याओं का समाधान होगा। समस्त समस्याओं के निदान के लिए कबीर ने ‘अंतरज्योति’ शब्द पर जोर दिया है।‌कबीर ने मनुष्य के स्व के जागरण की कोशिश की। स्व का जब परिचय होता है तो लगता है सभी मनुष्य बराबर है। कबीर प्रत्येक जन के लिए संबल, आशा के संचार हैं, हम उनके मार्ग को पकड़कर सहज रूप से कार्य कर सकते हैं।

विशिष्ट वक्ता के रूप में विवि के तुलनात्मक साहित्य विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामानुज अस्थाना ने कहा कि कबीर में दृश्य बिंब सबसे अधिक है। कबीर ने शरीर को कच्चा घड़ा कहा जो निरंतर गल रहा है अर्थात क्षणभंगुर है। कबीर पंचविकारों की बात करते हैं। सभी लोग इन्हीं विकारों में डूबे हुए हैं। उन्होंने इतिहास का अवलोकन करते हुए कबीर के अवदान पर बात रखी।


कार्यक्रम का संयोजन और संचालन हिंदी साहित्य विभाग के अध्यक्ष प्रो. अवधेश कुमार ने किया। उन्होंने कार्यक्रम की प्रस्ताविकी प्रस्तुत करते हुए कहा कि हम कबीर के कवि रूप, दार्शनिक चेतना, रहस्यवाद एवं भाषिक स्वरूप पर बात करते हैं। उनके सभी रूपों का वर्णन करते हैं, जिसमें उनका समाज सुधारक रूप सबसे महत्त्वपूर्ण है। कबीर के विविध आयाम उनके व्यक्तित्व के भीतर समाहित है। कबीर निर्गुण राम के उपासक थे। निर्गुण का अर्थ गुणहीन नहीं अपितु गुणातीत है जो गुण से भी परे हो। राम की उपासना में उनका प्रेम का तत्व सबसे प्रबल है। प्रेम ही वह तत्व है जो सारे वैमनस्य को दूर करता है एवं समरस भारत का निर्माण करता है। कबीर किसी धर्म या पंथ के विरोधी नहीं थे। वे उस समाज में, धर्म में जो विकृतियाँ आ गई थी उन्हें दूर करना चाहते थे। कबीर समरस समाज की रचना में हमेशा प्रयत्नशील रहे।


कार्यक्रम का संचालन हिंदी साहित्य विभाग के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ.अशोक नाथ त्रिपाठी ने किया तथा कुलसचिव प्रो. आनन्द पाटील ने धन्यवाद ‌ज्ञापित किया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया। इस अवसर पर शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही।