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इतिहास और रोमांच का अद्भुत मिश्रण है सोनभद्र का सलखन जीवाश्म पार्क

(धीरज उपाध्याय)

सलखन की वादियों में चलने वाली ठंडी हवायें जन्नत का एहसास कराती हैं। मारकुंडी घाटी से ही दिखने वाला यह हिस्सा अपनी अद्भुत छटा से अंतर्मन को प्रफुल्लित कर देता है। जैसे-जैसे हम घाटी से उतरते है वैसे-वैसे पार्क के प्रति जिज्ञासा का ज्वार उबाल लेने लगता है। इस घाटी की खासियत दोगुनी हो जाती है और पर्यटक इस घाटी का सुंदर दृश्य देखकर रोमांचित महसूस करते है।

हम किसी विदेशी पर्यटन स्थल नहीं बल्कि बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश की प्रकृति की गोद में बसे कैमूर व विंध्य की पर्वत शृंखला के बीच स्थित कुदरत के नायाब तोहफे, दुनिया की अनमोल धरोहर, सोनभद्र के सलखन स्थित फासिल्स पार्क की, जो दुनिया का सबसे पुराना फासिल्स पार्क है। यहां का फासिल्स अमेरिका के येलो स्टोन नेशनल पार्क से भी बड़ा है। यहाँ 140 करोड़ वर्ष से अधिक पुराने जीवाश्म पाये जाते है। चार राज्यों बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की सीमाओं से सटे जनपद सोनभद्र जिला मुख्यालय से करीब 16 किमी दूर सलखन में स्थित यह जीवाश्म यानि फासिल्स पार्क करीब 25 हेक्टेयर में फैला है। कैमूर वन्य जीव अभ्यारण के अंदर स्थित इस अनमोल धरोहर के इतिहास को दुनिया के कई वैज्ञानिक मान्यता दे चुके हैं।

इस पार्क की खोज सबसे पहले करीब 86 साल पहले यानि 1933 में हुई थी। जबकि वर्ष 2001 में जिला प्रशासन ने इसे धरोहर के रूप में मानना शुरू किया और अगस्त 2002 को इस पार्क का उदघाटन किया गया।

प्राचीन होने साथ सुंदर भी है सलखन

राबर्ट्सगंज से मारकुंडी और चोपन से सोन नदी पार करने के बाद सलखन की वादियों से मंद-मंद चलने वाली हवायें पर्यटको को अद्भुत आनंद का अनुभव कराती है। असंख्य प्रकार की हरी भरी झाडिय़ां मन को हरा-भरा कर देती हैं वहीं आसमान पर तैरते बादलों का झुंड, रंग-बिरंगे पक्षी और उनकी चहचहाहट  पर्यटकों के कानों को मधुर अहसास कराते है। फासिल पार्क के समीप है कई और रमणीय स्थल है जैसे विजयगढ़ दुर्ग, धंधरौल डैम, अबाड़ी पिकनिक स्पॉट, हाथीनाला बायोडायवर्सिटी पार्क, रिहंद डैम और झरने सहित तमाम दर्शनीय स्थल मौजूद हैं।

विजयगढ़ किले की खासियत

सैकड़ो वर्ष पहले राजा चेत सिंह ने विजयगढ़ किले का निर्माण कराया था। जब आप इसका भ्रमण करेंगे तो आप को अपने आप टीवी धारावाहिक चंद्रकांता का ख्याल आएगा। बताते है कि इस तिलिस्मी किले की खासियत इसके अंदर मौजूद गुफा है जिससे नौगढ़ से चुनारगढ़ किले तक पहुंचा जा सकता है। यही पर दो  रामसरोवर तालाब और सीता तालाब है जिसका पानी कभी नहीं सूखता।

कंडाकोट आस्था, रहस्य व रोमांच का संगम

आस्था, रहस्य और रोमांच के संगम वाले कंडाकोट का नाता केवल सोनांचल के लोगों से ही नहीं बल्कि कई प्रदेशों से है। जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी की दूरी पर स्थित बहुआर गांव से करीब आठ सौ फीट की ऊंचाई पर पहाड़ी के ऊपर अर्धनारीश्वर भगवान भोलेनाथ की मूर्ति है। यह आस्था का केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि वैदिक काल के ऋषि कण्व इसी पहाड़ी पर आकर तपस्या किए थे। यहीं पर शकुंतला-दुष्यंत के पुत्र भरत का लालन-पालन भी हुआ था। यहां की पहाड़ी औषधीय पौधे, रॉक पेंटिंग और पहाड़ी के पश्चिम ओर बना चिह्न आज भी रहस्य बना हुआ है। बरसात के दिनों में ऊंची पहाड़ी से नीचे का शानदार दृश्य यहां से दिखता सोन नदी का विहंगम नजारा रोमांच पैदा करता है।

महुअरिया वन्य जीव बिहार

कैमूर वन्य जीव बिहार महुअरिया में विदेशी सैलानियों का जत्था खूबसूरत वादियों का दीदार करने सात समुंदर पार से भी हर साल पहुंचता है। घाटी में प्रसिद्ध ब्लैकवक हिरनों के कुलाचे भरने की तस्वीर हर सैलानी अपने कैमरे में कैद करना चाहता है। इसके अलावा हजारों साल की प्राचीन काल की लेखनिया रॉक पेंटिग किसी अजूबे से कम नहीं हैं। सोन नदी के आसपास ब्यूटी आफ सोन का अद्भुत नजारा भी सैलानियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है। इको वैली जहां से प्रति ध्वनि की आवाज पूरे वन्य जीव बिहार में गुंजायमान हो जाती है। यहां आने वाले सैलानी अपनी आवाज की प्रतिध्वनि सुनकर रोमांचित हो उठते हैं। 

मुक्खाफाल का झरना करता है रोमांचित

सोनभद्र-मीरजापुर सीमा से सटे घोरावल तहसील क्षेत्र में स्थित मुक्खा फाल का झरना करता है रोमांचित। यहाँ  हर साल सैलानियों का रेला उमड़ता है। यहां जून से जनवरी माह तक सैलानियों की भीड़ रहती है। इसके साथ ही वाराणसी-शक्तिनगर राजमार्ग पर राबर्ट्सगंज से सात किमी दूर स्थित सोन ईको प्वाइंट सैलानियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। यहां स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमा के पास खड़े होकर देखने से मारकुंडी घाटी की अलौकिक छवि दिखाई देती है। बारिश में यहाँ पर्यटक बड़ी संख्या में भ्रमण के लिए आते हैं।

(लेखक धीरज उपाध्याय वरिष्ठ पत्रकार)