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दुर्लभ वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति से सजी अवध की शाम

 

▪️यूपी के लोक वाद्य चमेली, राम कुंडली, दुक्कड़, ताशा और हुड़का का प्रदर्शन

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। उत्तर प्रदेश पर्यटन नीति के अंतर्गत बुधवार को एक साथ 35 कलाकारों ने प्रदेश के विभिन्न दुर्लभ लोक वाद्यों का प्रभावपूर्ण प्रदर्शन किया। वाल्मीकि रंगशाला में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. मांडवी सिंह ने दीप प्रज्जवलित कर किया। कलाकारों ने राग जोग, कजरी, रामायण धुन, कजरी धुन, लोक धुन और होरी की प्रस्तुति दी। कलाकारों में सचिन दिवाकर, विशाल मौर्य, गीतिका स्वरूप, अंशिका मिश्रा, राहुल कुमार, माधवेंद्र प्रताप, टी. गोस्वामी, समीर सराठे, विभव शरण पांडे, वेदांग अवस्थी, शमसुद्दीन, पृथ्वी, जफर अंसारी, मोहित राय, हिमांशु शुक्ला, सिराज अहमद, अंश, कमल गुप्ता, अमित प्रसाद, अरुण मिश्रा, शब्बन, अयान मयंक सिंह, देवी प्रसाद, सौरभ सोनवानी, सम्राट राजकुमार, अलका श्रीवास्तव, नलिनी त्रिपाठी, अंशिका आदि प्रमुख रहे। संचालन राजेन्द्र विश्वकर्मा हरिहर ने किया।

इस अवसर पर प्रस्तुति निदेशक एवं ताल विशेषज्ञ शेख मोहम्मद इब्राहिम ने कहा कि सृष्टि के कण-कण में संगीत समाहित है। चाहे प्रकृति हो या मानव रचना हो। इन्हीं से संगीत का उद्गम और धीरे-धीरे विस्तार हुआ। जरूरत के मुताबिक गायन व नृत्य की संगत के लिए वाद्य यंत्रों का निर्माण होता गया लेकिन आधुनिक परिवेश में हमारी मूल संस्कृति पर उसका गहरा प्रभाव पड़ने के कारण आज हमारे अनेक वाद्य यंत्र विलुप्त होते जा रहे हैं। इन्हीं वाद्य यंत्रों को केंद्रित करते हुए आज का आयोजन हो रहा है जिसे उत्तर प्रदेश पर्यटन नीति-2018 के अंतर्गत प्रोत्साहन मिला है। यह प्रस्तुति लखनऊ, कानपुर व उन्नाव में हुए प्रशिक्षण व पूर्वाभ्यास के बाद हुई।

इन वाद्य यंत्रों का हुआ प्रदर्शन

वरिष्ठ तबला वादक शेख मोहम्मद इब्राहिम के निर्देशन में मुख्यत: यह प्रस्तुति उत्तर प्रदेश के पांच दुर्लभ वाद्य – ‘चमेली, राम कुंडली, दुक्कड़, ताशा, हुड़का’ पर केंद्रित रही। संगत वाद्य के रूप में बांसुरी, सितार, क्लेरियोनेट, मेंडोलियन, पैडल हारमोनियम, ढोलक, तबला वाद्य व सह-गायन रहा।