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“मैं हूँ ना” सहित डॉ. सत्या सिंह की पांच पुस्तकों का हुआ लोकार्पण

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। पूर्व पुलिस अधिकारी, साहित्यकार तथा समाजसेविका डॉ. सत्या सिंह की सद्यः प्रकाशित पांच पुस्तकों का लोकार्पण समारोह हिन्दी संस्थान के निराला सभागार में सम्पन्न हुआ। प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित की अध्यक्षता एवं डॉ. अमिता दुबे के संचालन में सत्या सिंह की कृतियाँ मैं हूँ ना, दम तोड़ते सपनों का शहर कोटा, अनाम पातियाँ, महाभारत की प्रबुद्ध महिलाएं एवं भारतीय कानून में महिलाओं का लोकार्पण उपस्थित वरिष्ठ साहित्यकारो के कर कमलों द्वारा हुआ।

इस अवसर पर कृतियों पर चर्चा हुई। विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. राम बहादुर मिश्र ने कहा कि सेवानिवृत्ति के पश्चात 6 वर्षों में सत्या सिंह ने 20 पुस्तकों का सृजन किया जिसमें विषय वैविध्य है। प्रकाशित कृति मैं हूं ना! पर विचार व्यक्त करते हुए अरुण सिंह ने कहा कि एक उद्देश्यपरक संतुलित जीवन के लिए सकारात्मकता, क्रोध भय एवं तनाव पर नियंत्राण उचित नजरिया आदि की गहरी समझ के साथ विवेचना की गई है। अनाम पातियाँ (काव्य संग्रह) की रचनाओं को भोगे हुए यथार्थ का सजीव चित्राण बताते हुए रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि सत्या सिंह की कविताएं जीवनानुभवों से जुड़ी है। विधिविद् श्रीयुत महेन्द्र भीष्म ने ‘भारतीय कानून में महिलाओं के अधिकार पर अपना मंतव्य देते हुए कहा कि गागर में सागर की तरह सुलभ सरल भाषा में लिखी यह पुस्तक देश केे कानून – पुलिस की कार्यशैली उनके व्यवहार दायित्व से परिचय कराती है।

वरिष्ठ साहित्यकार दयानन्द पाण्डेय ने ‘दम तोड़ते सपनों का शहर कोटा’ पुस्तक पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि कोटा इंजीनियरिंग और मेडिकल कोचिंग का हब बन चुका है। इन कोचिंग संस्थानों द्वारा अभिभावकों का अंधाधुंध आर्थिक शोषण बदस्तूर जारी है। आर्थिक शोषण तो गौण है लेकिन जिस समस्या ने भयावह रूप धारण कर लिया है वह बच्चों द्वारा आत्महत्या रूपी महामारी है।

वरिष्ठ कवि सर्वेश अस्थाना ने डॉ. सत्या सिंह के साहित्यिक अवदान की चर्चा करते हुए कहाकि सत्या जी ने कविता, कहानी, निबंध और सामाजिक विसंगतियों पर बहुत ही प्रभावशाली ढंग से लिखा है। डॉ. मिथिलेश दीक्षित ने सत्या सिंह के दो हाइकु काव्य संग्रह पर चर्चा की। समारोह के अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने पांचवीं पुस्तक ‘महाभारत की प्रबुद्ध महिलाएं’ पर अपना सारगर्भित वक्तव्य देते हुए वैदिक कालीन और महाभारत कालीन नारियों के वैदुष्य और उनकी सामाजिक स्वीकृत पर विस्तार पूर्वक चर्चा की। इसके अतिरिक्त डॉ. विनोद चन्द्रा एवं डॉ. मिथिलेश दीक्षित ने भी अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. सत्या सिंह ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया।