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शिक्षा के माध्यम से ही सामाजिक मानदंडों में बदलाव लाना संभव – डॉ. प्राची गंगवार

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। कार्यालय नियंत्रक संचार लेखा, दूरसंचार विभाग, संचार मंत्रालय, भारत सरकार, लखनऊ द्वारा “कार्यस्थल में लैंगिक संवेदनशीलता” विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। उक्त कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता मौजूद डॉ. प्राची गंगवार (आईएफओएस, उपमहानिरीक्षक, वन (सी), एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय, एमओईएफसीसी, लखनऊ) मौजूद रहीं। लैंगिक संवेदनशीलता बढ़ाने हेतु उन्होंने प्रत्येक महिला को परिवार की सदस्य समझते हुए व्यवहार करने पर बल दिया एवं लैंगिक संवेदनशीलता के सम्बन्ध में सरकार द्वारा इस दिशा में किये गए प्रयासों से सभी को अवगत कराया।

डॉ. प्राची गंगवार ने कहा कि मौजूदा पितृसत्तात्मक समाज में शिक्षा के माध्यम से ही सामाजिक मानदंडों में बदलाव लाना संभव है। ऐसे में समाज में लिंग आधारित रूढ़िवादिता और लैंगिक आधार पर भूमिकाओं के निर्धारण के मुद्दे को संबोधित करने तथा लड़कियों के बीच लैंगिक भेदभाव के प्रभाव को कम करने की दिशा में, इस तरह के डिजाइन किए गए लिंग संवेदनशील पाठ्यक्रम एवं शिक्षण पद्धतियां, बदलाव को गति देने वाले कारक साबित हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि जेंडर एट वर्क एक ऐसी दुनिया की कल्पना करता है जो महिलाओं के मानवाधिकारों और समानता की संस्कृतियों, विशेषकर लैंगिक समानता को महत्व देता है और उनका सम्मान करता है। डां गंगवार ने कहा कि हम समझते हैं कि असमानता रखने वाली सत्ता की प्रणालियों को बदलने के लिए लोगों, संस्थानों और संगठनों के बीच संबंधों को बदलना होगा।

संगीत कुमार (नियंत्रक संचार लेखा) ने कार्यशाला को संबोधित करते हुये कहाकि कार्यस्थलों के लिए लैंगिक समानता हासिल करना न केवल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ‘निष्पक्ष’ और ‘सही काम’ है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह देश के समग्र आर्थिक प्रदर्शन से भी जुड़ा हुआ है। कार्यस्थल पर लैंगिक समानता बेहतर राष्ट्रीय उत्पादकता और आर्थिक विकास से जुड़ी है। उन्होंने कहाकि लिंग भेदभाव अक्सर पूर्वकल्पित, गलत सामाजिक और व्यक्तिगत धारणाओं में निहित होता है कि लिंग क्या है, लिंग “कैसे” दिखना चाहिए, या लिंग का प्रदर्शन कैसे किया जाता है। उदाहरण के लिए, बहुत से लोग गलत तरीके से मानते हैं कि किसी का जैविक लिंग हमेशा उनके लिंग और इसलिए उनके दृष्टिकोण और व्यवहार को निर्धारित करता है।

इस अवसर पर अर्चना कुमारी (लेखाधिकारी), संवेदना सिंह (लेखाधिकारी), एएच खान (सहायक लेखाधिकारी) ने भी अपने विचार साझा किये।