विश्व सीओपीडी दिवस पर केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग में रोगी जागरूकता शिविर आयोजित
लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। आज पूरा विश्व प्रदूषण की मार झेल रहा है। बढ़ते वायु प्रदूषण के साथ-साथ सांस से संबन्धित बीमारियों के मरीजों की सख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। ऐसे में लोगों को सांस से संबन्धित बीमारियों के प्रति जागरूक करने के लिए प्रतिवर्ष नवम्बर माह के तीसरे बुधवार को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व सीओपीडी दिवस 15 नवम्बर को ’’ब्रीदिंग इज लाइफ एक्ट अर्लियर’’ की थीम के साथ मनाया गया। केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. सूर्यकान्त ने बताया कि प्रथम विश्व सीओपीडी दिवस सन् 2002 में मनाया गया था। इस वर्ष 22वाँ विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जा रहा है, जिसमें दुनिया के 50 से अधिक देश मिलकर सीओपीडी के जोखिम कारक, बीमारी, निदान एवं रोकथाम के प्रति लोगों को जागरूक करते हैं। सीओपीडी की अंतर्राष्ट्रीय गाईडलाइन-ग्लोबल इनिसिएटिव फार क्रोनिक आब्सट्रक्टिव लंग डिजीज (गोल्ड)-2024 के अनुसार सीओपीडी पूरी दुनिया में मौत के लिए जिम्मेदार तीसरी प्रमुख बीमारी है, जबकि भारत में मौत का यह दूसरा कारण है।
इस उपलक्ष्य पर केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के मधुसूदन चिकित्सा वाटिका में सीओपीडी जागरूकता शिविर का भी आयोजन किया गया। इंडियन चेस्ट सोसाइटी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. सूर्यकान्त ने रोगियों एवं उनके परिजनों को सम्बोधित करते हुए कहाकि सीओपीडी (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) सांस की एक प्रमुख बीमारी है। साल दर साल सीओपीडी को लेकर हमारी समझ में आमूलचूल परिवर्तन आया है। जहां तकरीबन दो दशक पहले सीओपीडी को केवल धूम्रपान करने वालों में होने वाली बीमारी के रूप में देखा जाता था वहीं आज विश्वस्तर पर हो रहे विभिन्न शोधकार्यों से यह सिद्ध हुआ है कि धूम्रपान के अलावा चूल्हे से निकलने वाले धुऐं, वायुप्रदूषण एवं लंबे समय तक बने रहने वाले फेफड़े के संक्रमण भी सीओपीडी के लिए उतने ही प्रमुख जोखिम कारक (रिस्क फैक्टर) हैं।
इंडियन कालेज आफ एलर्जी अस्थमा एण्ड एप्लाइड इम्यूनोलॉजी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि भारत जैसे देश में जहां धूम्रपान न करने वाले सीओपीडी मरीजों की संख्या अधिक है, यहां अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। इस जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से भारत के आम जनमानस में सीओपीडी जैसी बीमारी को लेकर जल्द जांच, इलाज व इलाज में इस्तमाल होने वाले इन्हेलर्स से संबन्धित भ्रान्तियों एवं मिथको को दूर करने का प्रयास किया गया। इस बीमारी के लक्षण 30 वर्ष की उम्र के बाद प्रारम्भ होते हैं। सबसे पहला लक्षण सुबह-सुबह खांसी आना होता है। इसके बाद धीरे-धीरे सर्दी के मौसम में एवं फिर बाद में साल भर खांसी आती रहती है, तत्पश्चात बलगम भी आने लगता है। बीमारी बढ़ने पर रोगी की सांस भी फूलने लगती है। डा. सूर्यकान्त ने बताया कि सीओपीडी सिर्फ फेफडे़ की ही बीमारी नही है, बल्कि बीमारी की तीव्रता बढ़ने पर हृदय, गुर्दा व अन्य अंग भी प्रभावित हो जाते है। शरीर कमजोर हो जाता है, भूख कम लगती है तथा हड्डियां भी कमजोर हो जाती हैं।
डा. सूर्यकान्त ने जोर देते हुए कहा कि जिस तरह से हृदय रोगियों के लिए हार्ट अटैक एक प्राणघातक घटना है उसी तरह से जब सीओपीडी की गम्भीरता बढ़ जाती है तो उसे लंग अटैक कहा जाता है। जब लंग अटैक के परिणाम स्वरूप जब अस्पताल में मरीज को भर्ती होना पड़ता है तो उनकी मृत्यु की सम्भावना दिल के दौरे के समान ही बढ़ जाती है। वायु प्रदूषण से बचने के लिए अंगौछा (गमछा) की चार परत से नाक व मुँह ढ़के, भाप लें तथा प्राणायाम करें।
इस अवसर पर विभाग के डा. आरएसए कुशवाहा, डा. राजीव गर्ग, डा. अजय कुमार वर्मा, डा. आनन्द श्रीवास्तव, जूनियर डॉक्टर्स, रोगी और उनके परिजन भी उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में सीओपीडी के रोगियों के प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये।