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कीटों के प्रति नकारात्मक धारणा को बदलने की जरूरत

 

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। कीटों को समझना: आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर दो दिवसीय संकाय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राणीशास्त्र विभाग की प्रोफेसर गीतांजलि मिश्रा और एनबीआरआई के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण सी वर्मा द्वारा किया गया। यह कार्यशाला लेडीबर्ड बीटल में अंग पुनर्जनन पर डीएसटी एसईआरबी द्वारा स्वीकृत एक शोध परियोजना की वैज्ञानिक सामाजिक जिम्मेदारी का एक हिस्सा थी। यह सहयोगी परियोजना यह समझने के लिए पारंपरिक और साथ ही नवीनतम तकनीकों का उपयोग करती है कि कीड़ों में अंग क्यों और कैसे पुनर्जीवित होते हैं, विशेष रूप से लेडीबर्ड बीटल, जो छोटे कीड़े हैं जो कृषि नाशी कीटों के जैविक नियंत्रण में मदद करते हैं।

यह कार्यक्रम लेडीबर्ड रिसर्च लेबोरेटरी, जूलॉजी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय और मॉलिक्यूलर बायोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी डिवीज़न, सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास के रूप में लखनऊ विश्वविद्यालय के उन्नत कंप्यूटिंग विकास संस्थान ओएनजीसी-सीएएस बिल्डिंग में आयोजित किया गया था।

कार्यशाला जीवों को समझने के लिए कुछ बुनियादी और उन्नत तकनीकों में संबद्ध कॉलेजों के 25 शिशिकों को प्रशिक्षित करने पर केंद्रित थी। कार्यशाला में कीट प्रबंधन, पुनर्जनन, प्रोटिओमिक्स, मेटाबोलॉमिक्स, जीनोमिक्स आदि पर 10 प्रतिष्ठित विशेषज्ञों द्वारा दिए गए व्याख्यान शामिल थे। हर दिन, व्याख्यान के बाद शिक्षिकों को छवि विश्लेषण और प्राइमर जैसे डेटा आउटपुट को बेहतर बनाने के लिए नई विश्लेषणात्मक तकनीकों का उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया गया। 

कार्यक्रम की समन्वयक प्रोफेसर गीतांजलि मिश्रा ने कहाकि व्याख्यानों में कार्यशाला का एक सामान्य सूत्र हमारे पर्यावरण के लिए कीड़ों के महत्व पर था। हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में कीड़े अपरिहार्य हैं और उन पर ध्यान न देने से हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का पतन हो जाएगा क्योंकि वे इसका सबसे प्रचुर घटक हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कैसे कीड़े काफी हद तक फायदेमंद हैं और इनके प्रति नकारात्मक धारणा को बदलने की जरूरत है।

कार्यशाला के समन्वयक, एनबीआरआई के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण सी वर्मा ने कीट जगत की जटिलताओं को समझने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है, क्योंकि अगर हम ध्यान नहीं देंगे तो बहुत सारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा क्योंकि कीड़े-मकौड़े विलुप्त होने लगेंगे। चयनित 25 शीषक प्रतिभागी नई जानकारी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और उन्हें प्रदान किए गए व्यक्तिगत प्रशिक्षण से प्रसन्न थे।