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कार्डियोवैस्कुलर से होने वाली 25 फ़ीसदी मृत्यु का प्रमुख कारण थ्रोम्बोसिस

थ्रोम्बोसिस कार्डियोवैस्कुलर रोग का है एक प्रमुख कारण, सावधानी बरत कर ही टाला जा सकता है खतरा

कैंसर और मधुमेह रोगियों को रखनी चाहिए विशेष सावधानी

ग्रेटर नोएडा (टेलीस्कोप टुडे डेस्क)। वर्ल्ड थ्रोम्बोसिस डे हर साल 13 अक्टूबर को मनाया जाता है। यह दिन थ्रोम्बोसिस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। थ्रांबोसिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें नसों में रक्त के थक्के बन जाते हैं। थ्रोम्बोसिस, दिल का दौरा, स्ट्रोक और पैर का गैंगरीन जैसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। एक अध्ययन के अनुसार थ्रांबोसिस कार्डियो वैस्कुलर रोग का एक प्रमुख कारण है। हार्ट अटैक के मामलों में लगभग 25 फीसदी मामले थ्रांबोसिस के चलते होते हैं। थक्के रक्त के प्रवाह को अवरुद्ध कर सकते हैं, जिससे हृदय को पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। इससे हृदय दौरे, स्ट्रोक, या अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। 

फोर्टिस हॉस्पिटल ग्रेटर नोएडा के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी विभाग के एडिशनल डायरेक्टर डॉ. विवेक टंडन ने थ्रोम्बोसिस और इसके इलाज के बारे में बताया, “वर्ल्ड थ्रोम्बोसिस डे, थ्रोम्बोसिस के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करता है। थ्रोम्बोसिस एक आम स्थिति है, लेकिन यह अक्सर कम आंकी जाती है। जागरूकता बढ़ने से, लोग इसके लक्षणों और जोखिमों के बारे में अधिक जान सकते हैं।” उन्होंने बताया कि थ्रोम्बोसिस एक गंभीर स्थिति है, जिसमें रक्त वाहिका में क्लॉट बन जाता है। यह क्लॉट रक्त प्रवाह को अवरुद्ध कर सकता है, जिससे अंगों को नुकसान या मृत्यु हो सकती है।

डॉ. विवेक टंडन ने बताया, “जब हमारे शरीर की धमनियों या शिराओं में कई कारणों से खून के थक्के या ब्लड क्लॉट जमने लगते हैं, तो इसे थ्रोम्बोसिस कहते हैं। थ्रोम्बोसिस के कारण उस ब्लड फ्लो में रुकावट होने लगती है। इसके कुछ लक्षण होते हैं। अगर जैसे कि शिराओं में थ्रोम्बोसिस है, तो वहाँ पर सूजन होने लगेगी, दर्द होने लगेगा। अगर यह धमनियों में थ्रोम्बोसिस होगा तो तब तक इसके लक्षण नहीं पता लगेंगे जबतक शरीर के किसी अंग में अवरोध पैदा न होने लगे। अगर ऐसा होता है, तो इससे काफी गंभीर परेशानियां हो सकती हैं, जिनमें शामिल है हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक या किसी अंग में खून का प्रवाह रुक जाना, जिससे वह अंग नीला या बेरंग पड़ जाता है।”

ज्यादातर, इससे शरीर में जो हिस्से प्रभावित होते हैं, उनमें एक तो पैर होता है। पैर से थ्रोम्बोसिस निकलकर फेफड़ों में जा सकता है, जिसे पल्मोनरी इम्बोलिज़म कहते हैं। दूसरा जो प्रभावित होता है, वह हृदय होता है, जिससे हार्ट अटैक होता है। ब्रेन पर भी प्रभाव होता है, जिससे स्ट्रोक या फालिज की बीमारी होती है।

थ्रोम्बोसिस दो प्रकार का होता है: 

वीनस थ्रोम्बोसिस और आर्टिरियल थ्रोम्बोसिस। वेन्स में थ्रोम्बोसिस, जो डीप वेन थ्रोम्बोसिस के नाम से भी जाना जाता है, उससे खून का प्रवाह धीमा या रुक जाता है। धमनियों में थ्रोम्बोसिस, जो आर्टरियल थ्रोम्बोसिस के नाम से भी जाना जाता है, उससे खून के प्रवाह पर असर पड़ता है।

थ्रोम्बोसिस के इलाज के लिए सबसे आम दवाएं एंटीकोगुलेंट हैं। एंटीकोगुलेंट रक्त के थक्के को बनने या बढ़ने से रोकते हैं। थ्रोम्बोसिस के प्रकार और गंभीरता के आधार पर, एंटीकोगुलेंट दवाएं लंबे समय तक या कुछ दिनों के लिए दी जा सकती हैं। बहुत गंभीर मामलों में, थ्रोम्बोसिस को हटाने के लिए सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। सर्जरी के प्रकार थक्के के स्थान और आकार पर निर्भर करते हैं।

हार्ट अटैक या स्ट्रोक जैसी गंभीर स्थितियां नसों में रुकावट के कारण होती हैं। इनमें से सबसे आम स्थिति डीप वेन थ्रॉम्बोसिस है, जिसमें पैर की नसों में थक्के बन जाते हैं। इसके लक्षणों में पैर में दर्द, सूजन और लालिमा शामिल हैं। अगर थक्के टूटकर फेफड़ों की धमनियों में चले जाते हैं, तो पल्मोनरी एम्बोलिज़म हो सकता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ, खांसी, और खून की उल्टी हो सकती है। इसके जोखिम कारकों में लंबे समय तक बैठे या खड़े रहना, सर्जरी या चोट, कैंसर, डायबिटीज, मोटापा, गर्भावस्था और कुछ दवाएं शामिल हैं।

थ्रोम्बोसिस को रोकने के लिए किये जा सकते हैं ये उपाय

– नियमित रूप से व्यायाम करना रक्त प्रवाह को बढ़ाने और रक्त के थक्के बनने की संभावना को कम करने में मदद करता है।

– वजन कम करें क्योंकिमोटापा रक्त के थक्के बनने की संभावना बढ़ाता है।

– धूम्रपान न करें, धूम्रपान रक्त को गाढ़ा बना सकता है, जिससे क्लॉट बनने की संभावना बढ़ जाती है।

– कैंसर या डायबिटीज के मरीज या ऑर्थोपेडिक सर्जरी करा चुके मरीज अपनी दवाएं समय पर लें।