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दिमाग में बम की तरह फटेगी ’72 हूरें’ में दिखाई गई हक़ीक़त

एजेंसी। दुनिया भर में धर्म की आड़ में फ़ैलाए जाने वाले आतंकवाद का सबसे ज़्यादा शिकार होने वाले देशों में भारत का भी शुमार रहा है। सब जानते हैं कि धार्मिक‌ कट्टरता और कट्टरपंथियों ने आतंकवाद को ढाल‌ बनाकर‌ देश की आत्मा को किस क़दर लहूलुहान किया गया है। भारत में आतंकवाद को केंद्र में रखकर क‌ई फ़िल्में बनी हैं लेकिन हिंदी सिनेमा में महज़ब और अल्लाह के नाम पर क़त्ल-ए-आम को जायज़ ठहराने वालों को वास्तविक तरीके से एक्पोज़ करने की कोशिश शायद ही कभी हुई हो। आतंकवाद के इसी घिनौने खेल‌ को पुरज़ोर तरीके से एक्पोज़ करती है फ़िल्म ’72 हूरें’ जिसे दिल दहला देने वाले अंदाज़ में निर्देशक संजय पूरण सिंह चौहान ने बड़े पर्दे पर पेश किया है।

’72 हूरें’ की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि यह फ़िल्म बिना किसी लाग-लपेट के बड़े ही सीधे व सपाट तरीके से आतंक की फ़ैक्टरी चलाने वाले आकाओं की ओर उंगली उठाती है और निर्मम‌ तरीके से उन सभी का पर्दाफ़ाश करती है। अनिल पांडेय का लेखन और फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुके संजय पूरण सिंह चौहान का निर्देशन जानदार है। आतंकवाद की वास्तविकता को दर्शाती और उसकी जड़ों‌ से परिचित कराती फ़िल्म ’72 हूरें’ की दिलचस्प कहानी और उसका अंदाज़-ए-बयां अंत तक दर्शकों को बांधने में कामयाब साबित होता है।

ग़ौरतलब है कि यह फ़िल्म किसी धर्म विशेष को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश नहीं करती है, बल्कि यह फ़िल्म धर्म के नाम पर देश में पसरे आतंकवाद की ऐसी हक़ीक़तों को उजागर करने की कोशिश करती है। जिससे हम एक लम्बे अर्से से मुंह मोड़ते आए हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि धर्म के नाम पर ख़ून बहाने वाले दुर्दांत लोगों के हौसले इस क़दर बढ़ गये हैं कि इंसानितत का क़त्ल करने से पहले वे एक बार भी‌ सोचना मुनासिब नहीं समझते हैं।

फ़िल्म‌ ’72 हूरें’ की कहानी, पटकथा, संवाद, छायांकन, संपादन, निर्देशन और तमाम कलाकारों का अभिनय सबकुछ इस क़दर दमदार है कि फ़िल्म देखते वक्त आपको लगेगा ही नहीं कि आप पर्दे पर कोई फ़िल्म देख रहे हो। आपको ऐसा लगेगा मानो आप अपने घर की खिड़की के बाहर कोई ऐसा भयावह मंज़र देख रहे हैं जो आपके दिन का चैन और रातों की नींद उड़ा देगा।

महज़ब के नाम पर आतंकवादी मंसूबों को अंजाम‌ देने वाले आतंकवादियों के किरदार में पवन मल्होत्रा और आमिर बशीर से जबर्दस्त काम किया है। फ़िल्म में दोनों की उम्दा अदाकारी की जितनी तारीफ़ की जाए कम ही होगी. बाक़ी कलाकारों ने भी अपने-अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है। मनोरंजन के नाम पर‌ कुछ भी देख लेने की आदत रखने वाले दर्शकों को आतंकवाद और धार्मिक कट्टरता की पोल‌ खोलती फ़िल्म ’72 हूरें’ ज़रूर देखनी चाहिए। फ़िल्म नासूर की तरह बन चुके आतंकवाद और उसके कट्टरपंथी प्रायोजक‌ओं पर करारा प्रहार करती है।