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भगवान विष्णु के छठवें अवतार श्री दत्तात्रेय जी

लेखक : डा. मुरली धर सिंह (सूर्य)
उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना विभाग के अधिकारी हैं, इसके पूर्व उत्तर प्रदेश के धार्मिक नगर जैसे-वाराणसी, प्रयागराज, चित्रकूट, मथुरा, गोरखपुर आदि में सूचना विभाग के अधिकारी के रूप में तैनात रहे हैं। M- 7080510637/9453005405, ईमेल-thmurli64@gmail.com

भगवान विष्णु के छठवे अवतार के जन्म (मार्गशीर्ष) पूर्णिमा श्रीमद् भागवत के प्रथम स्कन्द के तीसरे अध्याय में उल्लेखित है कि भगवान विष्णु के 24 अवतार है, जिसमें-

  1. श्री सनकादि मुनि अवतार 2. वराह अवतार 3. नारद अवतार 4. नर-नारायण अवतार
  2. कपिल मुनि अवतार 6. दत्तात्रेय अवतार 7. यज्ञ अवतार 8. भगवान ऋषभदेव अवतार
  3. आदि राजपृथृ अवतार 10. मत्स्य अवतार 11. कुर्म अवतार 12. भगवान धन्वंतरी अवतार
  4. मोहिनी अवतार 14. भगवान नरसिंह 15. वामन अवतार 16. हयग्रीव अवतार
  5. श्री हरि अवतार 18. परशुराम अवतार 19. व्यास अवतार 20. हंस अवतार
  6. राम अवतार 22. कृष्ण अवतार 23. बुद्ध अवतार 24.कल्कि अवतार इसी में छठवे अवतार भगवान दत्तात्रेय के है और यह पूर्ण रूप से विष्णु अवतार है। महर्षि अत्रि एवं माता सती अनुसुइया के पुत्र के रूप में दत्तात्रेय भगवान का अवतार हुआ था। उनके पुत्र के रूप में भगवान शंकर के अंश से महर्षि दुर्वासा जी एवं ब्रहमा के अंश से चन्द्रमा जी का भी जन्म हुआ था और भगवान दत्तात्रेय का अवतार माता सती अनसुइया एवं महर्षि अत्री के विशेष आराधना पर भगवान विष्णु ने उनके पुत्र के रूप में उत्पन्न होने का आर्शीवाद दिया था।

ऐसा माना जाता है कि केवल स्मरण करने मात्र से ही यह भक्तों के पास पहुंच जाते हैं। पूर्णिमा में पूर्ण चंद्रमा के कारण सकारात्मकता होती है। पूर्णिमा में शिव की परमप्रिय पवित्र सलिला मां गंगा का स्नान अद्भुत फल देता है। इस दिन जो अपने पितरों का तर्पण करता है, उन्हें पितृदोष से मुक्ति मिलती है।

इस दिन विष्णु जी और लक्ष्मी जी की विशेष पूजा होती है। पूर्णिमा के दिन उपवास, पवित्र नदियों में स्नान-दान करने की परंपरा है। कथा है कि माता पार्वती जी, लक्ष्मी जी और ब्राम्ह्राणी जी को अपने पतिव्रत और सद्गुणों पर अभिमान हो गया। नारद जी को महसूस हुआ तो अभिमान समाप्त करने के लिए माताओं को कह दिया कि सती के समान पतिव्रता और सद्गुण संपन्न स्त्री तीनों लोकों में कोई और नहीं हैं। तीनों देवियों ने त्रिदेवों को विवश किया कि वे अनुसुइया जी का पतिव्रत धर्म भंग करे। तीनों देव, तीनों देवियों की बात सुनकर सती अनुसुइया की परीक्षा लेने के लिए उनके पास पहुंच गए। अनुसुइया जी ने त्रिदेवों के छल को समझ कर उन्हें अपने तप के बल पर बाल रूप में बदलकर पालने में सुला दिया।

जब माता लक्ष्मी जी, पार्वती जी और ब्राम्ह्राणी जी अपने पतियों को लेने अनुसुइया जी के पास आईं, तो दृश्य देखकर उनसे क्षमा मांगी, तब अनुसुइया ने पुनः अपने तप के बल पर तीनों देवों को पहले वाले रूप में ला दिया। तीनों देव ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वे तीनों उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे।

सती अनुसुइया जी और महर्षि अत्रि के पुत्र दत्तात्रेय के तीन सिर और छह भुजाएं हैं। पृथ्वी, गाय और वेद के रूप में चार कुत्ते सदैव ़ इनके साथ रहते हैं। श्रीमद्भागवत में दत्तात्रेय जी ने कहा है कि उन्होंने अपनी बुद्धि के अनुसार बहुत से गुरुओं का आश्रय लिया। पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, अग्नि, चंद्रमा, सूर्य, कबूतर, अजगर, समुद्र, पतंग, भौंरा या मधुमक्खी,. हाथी, शहद निकालने वाला, हरिन, मछली, पिंगला वेश्या, कुर पक्षी, बालक, कुंआरी कन्या, बाण बनाने वाला, सर्प, मकड़ी और भृंगी कीट-ये सभी श्रीदत्तात्रेय के गुरु हैं।