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सरसंघचालक डॉ. भागवत का हिन्दू समाज से अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़ने का आह्वान

अभनपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने विराट हिंदू सम्मेलन को संबोधित करते हुए जातिगत भेदभाव और छुआछूत त्यागने का संदेश देते हुए कहा कि समाज में किसी को उसकी जाति, धन या भाषा के आधार पर नहीं आंका जाना चाहिए। हिंदू समाज को अपने मन से अलगाव और भेदभाव की भावना को पूरी तरह निकाल देना चाहिए। उन्होंने हिंदू समाज से संगठित होने और आपसी अलगाव खत्म करने की अपील की।सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने तीनदिवसीय छत्तीसगढ़ दौरे के दूसरे दिन बुधवार को रायपुर जिला के अभनपुर विकासखंड के सोनपैरी में आयोजित विराट हिंदू सम्मेलन को संबोधित किया। इस अवसर पर राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उनके मंत्रिमंडल सहयोगी भी उपस्थित रहे।सम्मेलन को संबोधित करते हुए सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि `संघ की स्थापना को 100 साल पूरे हुए। हम हिन्दू किसी भी क्षेत्र में विचार करें तो संकट नजर आता है। हमें संकट की चर्चा नहीं करनी है, संकट का उपाय हमारे पास ही है। हम ठीक रहें, तो किसी संकट की औकात नहीं है कि हमको लील जाए।’संघ प्रमुख ने हिन्दू समाज को अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि `हमारी भाषा, भूषा, भजन, भवन, भ्रमण और भोजन- ये सब अपने होने चाहिए। जिसमें अपनी भाषा का प्रयोग, स्थानीय वेशभूषा, अपने देवी-देवताओं का स्मरण और स्थानीय खान-पान व स्थलों का भ्रमण शामिल है, ताकि देश की सांस्कृतिक जड़ों को मज़बूत किया जा सके और आत्मनिर्भरता व ‘स्व’ (अपनेपन) की भावना को बढ़ाया जा सके।’मोहन भागवत ने कहा कि `लोगों को जाति, धन या भाषा के आधार पर जज नहीं करना चाहिए। ये देश सबका है। सद्भाव की दिशा में पहला कदम भेदभाव की भावनाओं को दूर करना और सभी को अपना मानना है।’ उन्होंने पारिवारिक मेलजोल पर जोर देते हुए कहा कि परिवारों को सप्ताह में कम-से-कम एक दिन एक साथ बिताना चाहिए, अपनी आस्था के अनुसार प्रार्थना करनी चाहिए, घर का बना खाना एक साथ खाना चाहिए और सार्थक चर्चा करनी चाहिए। भागवत ने इन चर्चाओं को ‘मंगल संवाद’ कहा।उन्होंने दोहराया कि `भारत एक हिंदू राष्ट्र है और इसके लिए किसी संवैधानिक मुहर की आवश्यकता नहीं है। जब तक इस धरती पर एक भी व्यक्ति भारतीय पूर्वजों के गौरव में विश्वास रखता है, तब तक यह हिंदू राष्ट्र बना रहेगा।’ उन्होंने मंदिर, जल के स्रोत और श्मशान घाटों तक सभी हिंदुओं की समान पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया। संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने कहा कि यदि हिंदू समाज संगठित और मजबूत रहेगा, तभी वह दुनिया के कल्याण के लिए काम कर पाएगा। उन्होंने “हिंदू जगे तो विश्व जगे” का संदेश दिया।उन्होंने प्रत्येक परिवार से घरेलू स्तर पर पर्यावरण की रक्षा का भी आग्रह किया। उन्होंने कहा कि `ग्लोबल वार्मिंग हो रहा है। ऋतु चक्र बदल रहा है। जंगल कम हो गए, तो पानी कम हो गया। तो अपने घर से शुरू करो, घर में पानी बचाओ। सिंगल यूज प्लास्टिंग का इस्तेमाल छोड़ दीजिये। एक पेड़ लगाएं। जितनी हरियाली अपने आसपास कर सकते हैं, उतना करना।’उन्होंने कहा कि `हम भारत के लोग हैं, यूरोप-चीन के नहीं इसलिए अपने घर के भीतर अपनी भाषा बोलनी चाहिए। मेरी मातृभाषा में बोलूंगा। जिस प्रांत में रहता हूं तो वहां की भी भाषा सीखूंगा। स्व-भाषा का आग्रह रखना। धर्म का चित्रण संविधान में है, इसे पढ़ें। संविधान के आधार पर कानून बनाया गया है। घर में बड़ों के पैर छुएं। यह संविधान में नहीं पर, इसका अनुसरण जरूर करें।’मोहन भागवत अपने व्यवहार से भी सिखाते हैं-संत असंग देव महाराजसरसंघचालक के उद्बोधन पहले सम्मेलन में मुख्य अतिथि संत असंग देव महाराज ने कहा कि स्वयंसेवक संघ की स्थापना का सौवां वर्ष पूरा हो चुका है। स्वयंसेवक संघ हमें स्वयं संगठक बनाता है। संत कबीर ने कहा कि अकेले में तुम्हे कोई भी नोच सकता है, संगठन बनाओगे तो बचे रहोगे।संत ने चाणक्य के कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि आपका धन खो जाए मिल जाएगा, घर टूट जाएगा तो फिर बन जायेगा लेकिन अगर आपका शरीर एक बार गया तो यह काया फिर नहीं मिलेगी। देवता भी मनुष्य शरीर चाहता है। लेकिन जिनको मानव शरीर मिला वो मांस खाकर दानव बन रहे हैं। संतों की संगत में दानव भी तर जाता है।उन्होंने कहा कि मोहन भागवत जी सिर्फ वाणी से नहीं सिखाते बल्कि अपने व्यवहार से भी सिखाते हैं। इस उम्र में भी घूम-घूम कर एकता से राष्ट्र के निर्माण का पैगाम दे रहे हैं। परस्पर प्रेम की जरुरत है।