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सुरीली आवाज के साथ ही संगीत की शैलियों से परिचित करा रही डा. अर्चना श्रीवास्तव

लखनऊ (शम्भू शरण वर्मा/टेलीस्कोप टुडे)। संगीत एक ऐसी कला है जो न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि यह हमारे जीवन को भी समृद्ध बनाती है। संगीत की शिक्षा देने वाले शिक्षक न केवल अपने छात्रों को संगीत के मूल तत्वों से परिचित कराते हैं, बल्कि वे उन्हें जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी सिखाते हैं। समाज व देश के लिए दिल में कुछ कर गुजरने का हौसला हो और लोगों का साथ हो तो मंजिल पाने में कोई भी बाधा आड़े नहीं आती है। 

कुछ ऐसी ही कहानी है मूलरूप से बिहार के सीवान जिले की निवासी विशिष्ठ संगीत शिक्षिका डा. अर्चना श्रीवास्तव की। सीवान जिले के ग्राम कैथोली मैरवा निवासी किसान विजय कुमार श्रीवास्तव के परिवार में जन्मी डा. अर्चना श्रीवास्तव को बचपन से ही संगीत का शौक था। जिसे पूरा करने में उनके माता पिता व परिवार के अन्य सदस्यों ने पूरा सहयोग किया। 

कई पीढ़ियों से चली आ रही परम्परा को आगे बढ़ा रही डा. अर्चना

डा. अर्चना के मुताबिक उनके दादा स्व. रामा प्रसाद श्रीवास्तव प्रत्येक मंगलवार को घर पर कीर्तन करवाते थे। उनके निधन के बाद पुत्र विजय कुमार श्रीवास्तव ने परम्परा कायम रखी। परिवार में संगीत का माहौल देख डा. अर्चना में भी संगीत की रुचि जागी। बचपन में वह अक्सर अपने पिता के साथ न सिर्फ आसपास होने वाले भजन कीर्तन के आयोजनों में जाती थी बल्कि वहां भजनों को भी गाती थी। उनकी सुरीली आवाज की लोगों ने जमकर तारीफ की। लोगों ने डा. अर्चना को गाता देख कहा कि वह बड़ी होकर अवश्य ही संगीत के क्षेत्र में अपना और अपने परिवार का नाम रौशन करेगी। 

दादा और पिता के साथ ही मां से भी मिली प्रेरणा 

अर्चना बताती है कि उन्हें बचपन से ही संगीत का शौक था। उनकी मां रामावती देवी को भी खुद अपना भजन लिखने और गाने का शौक था। मां अक्सर घर में पारंपरिक लोकगीत गाती थी। जिसे वह बचपन में ध्यानपूर्वक सुनती रहती थी और उसे गाने का प्रयास करती थी। दादा और पिता के साथ ही मां से प्रेरित होकर ही अर्चना ने संगीत के क्षेत्र में कदम रखा, जिसमें पूरे परिवार ने सहयोग किया।

संगीत के क्षेत्र में दी उच्च शिक्षा दिलाने की सलाह

डा. अर्चना ने दृढ़ संकल्प कर लिया कि वह अपने हौसलों को पंख देगी और कुछ बनकर दिखायेगी। उनके दृढ़ संकल्प को देख उसके इस हौसले को उड़ान भरने में परिजनों के साथ ही शुभ चिंतकों ने भी पूरा सहयोग किया। अर्चना ने अपने पिता से संगीत गुरु से शिक्षा दिलाने की जिद की। जिसपर पिता ने बिहार के छपरा निवासी संगीत गुरु पं. राम प्रकाश मिश्रा की शरण में बेटी को संगीत की शिक्षा दिलाई। पं. राम प्रकाश मिश्रा भी डा. अर्चना का हुनर देख दंग रह गए। उन्होंने अर्चना को संगीत के क्षेत्र में उच्च शिक्षा दिलाने की सलाह परिजनों को दी।

अपनों ने दी हिदायत, परिवार का मिला साथ 

अर्चना बताती हैं कि वह अक्सर सुबह 4 बजे से ही घर पर हारमोनियम बजाकर भजन गाने लगती थीं। उनकी आवाज परिवार, मोहल्ले, गांव में मशहूर होने लगी थी। लेकिन कुछ लोगों को उनका गायन खटकने लगा। लोग तंज कसने लगे, उन्होंने पिता को हिदायत दी कि बेटी को ज्यादा छूट न दो, परिणाम सही नहीं होगा। लेकिन पिता ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्हें अपनी बेटी की प्रतिभा पर पूरा विश्वास था। पिता ने लोगों की परवाह किए बिना कदम कदम पर साथ दिया। जिसका परिणाम बेटी ने सुरों की ऐसी साधना की कि उनका नाम चर्चित हो गया। 

बिहार परंपराओं का प्रदेश है, ऐसे में वह हिंदी के साथ ही भोजपुरी में भी गाती हैं। जब वह पारंपरिक लोकगीतों व गानों से अपनी सुरीली आवाज का जादू बिखेरती है तो सभी मंत्रमुग्ध हो जाते है। डा. अर्चना गायकी के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करना चाहती है, उनकी सुरीली आवाज के सभी कायल है।

बेटी के लिए पिता ने खोला संगीत विद्यालय 

पं. राम प्रकाश मिश्रा की सलाह पर विजय कुमार श्रीवास्तव ने अपनी बेटी के उड़ानों को पंख देने के लिए वर्ष 2005 सीवान के मैरवा में संगीत विद्यालय खोल दिया। जो वर्तमान में सहकारिता संगीत महाविद्यालय के नाम से संचालित हो रहा है। 

संगीत में की PHD, बनी विशिष्ठ शिक्षिका 

परास्नातक तक शिक्षा ग्रहण करने वाली डा. अर्चना ने वर्ष 2013 में श्रीधर विश्वविद्यालय राजस्थान से वर्ष 2013 में संगीत में PHD की। वर्ष 2015 में डा. अर्चना का चयन बिहार सरकार के द्रोणाचार्य हाईस्कूल सह इंटर कॉलेज दरौली सीवान में विशिष्ठ संगीत शिक्षिका के पद पर हुआ। जहां वह स्टूडेंट्स को संगीत की शिक्षा दे रही हैं। यही नहीं उनके 32 शिष्यों का चयन भी बिहार सरकार में संगीत शिक्षक के रूप में हुआ है। 

पति का भी मिल रहा सहयोग 

करीब दो वर्ष पूर्व डा. अर्चना का विवाह GSI लखनऊ में कार्यरत रामाकांत सिन्हा से हुआ। विवाह के बाद ससुराल पक्ष का भी पूरा सहयोग डा. अर्चना को मिल रहा है। अपनी पत्नी के पंखों को उड़ान देने में रामाकांत सिन्हा भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। लखनऊ के सेक्टर – “ए” सीतापुर रोड योजना कालोनी में बीते 27 सितंबर से 2 अक्टूबर 2025 तक आयोजित 6 दिवसीय 33वें रामलीला समारोह में भी डा. अर्चना ने भजनों की प्रस्तुति से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

बिहार के राज्यपाल भी कर चुके हैं सम्मानित

डा. अर्चना को संगीत के क्षेत्र में पहला सम्मान वर्ष 2007 में हरिराम हाईस्कूल में आयोजित एड्स जागरूकता अभियान में प्रस्तुति पर मिला था। जहां उन्हें बिहार शिक्षा विभाग के अधिकारी ने सम्मानित किया था। वहीं वर्ष 2018 में आयोजित अंगिका महोत्सव में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन ने सम्मानित किया था। इसके अलावा उन्हें संगीत के क्षेत्र में कई सम्मान मिल चुका है।

छात्रों को संगीत की दुनिया में दिखा रही नई दिशा

एक संगीत शिक्षिका की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। वह न केवल अपने छात्रों को संगीत की शिक्षा देती है, बल्कि वह उन्हें आत्मविश्वास और अनुशासन भी सिखाती है। वह अपने छात्रों को उनकी प्रतिभा को पहचानने और विकसित करने में मदद करती है। डा. अर्चना श्रीवास्तव भी अपने छात्रों को विभिन्न प्रकार के गीतों और संगीत की शैलियों से परिचित करा रही है, जिससे वे अपनी पसंद के अनुसार संगीत की शिक्षा प्राप्त कर सकें। अपनी सुरीली आवाज और संगीत के प्रति अपने जुनून के साथ, वह अपने छात्रों को संगीत की दुनिया में एक नई दिशा दिखा रही है।