लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के 74 वर्षीय लाल प्रताप सिंह पिछले दस सालों से अपनी दाहिनी जांघ में 3.6 किलोग्राम की विशालकाय गांठ (लिपोमा) का बोझ उठा रहे थे। इस ट्यूमर के कारण उन्हें न केवल असहनीय तकलीफ हो रही थी, बल्कि उनकी चलने-फिरने की क्षमता भी बहुत सीमित हो गई थी। उन्होंने बड़े अस्पतालों में इलाज कराने की कोशिश की, लेकिन उनकी बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के कारण डॉक्टरों ने ऑपरेशन करने से इनकार कर दिया। मुख्य चिंता इस बात की थी कि सर्जरी के दौरान अधिक रक्तस्राव हो सकता है, जिससे गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो सकती थीं।
मेदांता अस्पताल के प्लास्टिक, एस्थेटिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी विभाग के निदेशक डॉ. निखिल पुरी ने इस चुनौतीपूर्ण सर्जरी को करने का फैसला किया। उन्होंने कहा, “किसी भी जटिलता के डर से किसी मरीज को जीवनभर तकलीफ में नहीं रखा जा सकता। हर व्यक्ति को बेहतर जीवन जीने का हक है।” पूरी जांच के बाद डॉक्टरों ने पाया कि ट्यूमर नसों के काफी पास था, जिससे ऑपरेशन जोखिम भरा था। लेकिन डॉ. पुरी और उनकी टीम, डॉ आशीष यूके (प्लास्टिक सर्जन) और डॉ आशीष खाना (एनेस्थेटिस्ट) ने पूरी तैयारी के साथ सर्जरी करने का निर्णय लिया और अगले ही दिन ऑपरेशन किया। आमतौर पर ऐसे बड़े ट्यूमर को छोटे टुकड़ों में काटकर निकाला जाता है, लेकिन डॉ. पुरी ने इसे एक ही बार में सुरक्षित रूप से निकालने का फैसला किया, जिससे रक्तस्राव का खतरा कम हो गया।
सर्जरी पूरी तरह सफल रही और लाल प्रताप सिंह ने तेजी से रिकवरी की। महज चार दिन के भीतर उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई, और वह बिना किसी तकलीफ के चलने-फिरने लगे। इस सफल ऑपरेशन ने न केवल उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया, बल्कि यह उन मरीजों के लिए भी एक उम्मीद बन गया है, जो अपनी बीमारी के कारण निराश महसूस कर रहे हैं।