लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। सीएसआईआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीडीआरआई), लखनऊ ने अपना 74वां वार्षिक दिवस मनाया, जो भारत में अग्रणी औषधि अनुसंधान और विकास में उत्कृष्टता की विरासत को दर्शाता है। इस अवसर पर 50वां सर एडवर्ड मेलानबी मेमोरियल व्याख्यान आयोजित किया गया। जिसे भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर की मानद प्रोफेसर और राष्ट्रीय विज्ञान अध्यक्ष, प्रोफेसर संध्या एस. विश्वेश्वरैया ने प्रस्तुत किया। इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज लिमिटेड के सह-अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक जीवी प्रसाद उपस्थित रहे। यह विशेष अवसर सीएसआईआर-सीडीआरआई के प्लेटिनम जुबली वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है, जो नवाचार और वैश्विक वैज्ञानिक नेतृत्व के प्रति संस्थान की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है।
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प्रोफेसर संध्या एस. विश्वेश्वरैया ने अपने व्याख्यान में आंत (गट) के कार्य एवं शरीर विज्ञान के महत्व पर जोर देते हुए हिप्पोक्रेट्स के कथन को उद्धृत किया कि “सभी बीमारियाँ आंत से प्रारंभ होती हैं।” उन्होंने आंत को शरीर की सबसे बड़ी प्रतिरक्षा प्रणाली बताया, जो प्रतिदिन संक्रमित पदार्थों के सेवन से निपटती है। अपने वैज्ञानिक शोध अनुभव को साझा करते हुए, उन्होंने साइक्लिक जीएमपी (Cyclic GMP) पर चर्चा की और विशेष रूप से छोटे बच्चों में डायरिया रोगों की गंभीरता को उजागर किया। उन्होंने कहा कि इन रोगों के कारण पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर बहुत अधिक है, और हर दसवें बच्चे की मृत्यु डायरिया के कारण होती है। उन्होंने गुयानील साइक्लेज़ (GC-C) रिसेप्टर की जैव-रसायन एवं जीव विज्ञान को समझने के लिए अपने अनुसंधान पर भी चर्चा की, जो मानव आंत के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
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वार्षिक दिवस व्याख्यान देते हुए जीवी प्रसाद ने “भारत में दवा अनुसंधान में प्रगति, चुनौतियाँ और अवसर” विषय पर बात की। उन्होंने बताया कि भारत मात्रा के आधार पर फार्मास्युटिकल निर्यात में विश्व में तीसरे स्थान पर है, लेकिन अब आवश्यकता है कि मात्रात्मक निर्यात से मूल्य-संचालित नवाचार की ओर बढ़ा जाए। 2047 तक भारत को फार्मास्युटिकल निर्यात मूल्य में शीर्ष पाँच देशों में शामिल करने की दृष्टि रखते हुए, उन्होंने उद्योग-अकादमी-सरकार सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों की सफलता की कहानियों को साझा करते हुए, उन्होंने डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज की विभिन्न उपचारात्मक क्षेत्रों में नवाचार को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया।
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सीडीआरआई की निदेशक, डॉ. राधा रंगराजन ने वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए, बीते वर्ष में दवा अनुसंधान एवं सहयोग में हुई महत्वपूर्ण उपलब्धियों और प्रगति को प्रदर्शित किया। उन्होंने दो प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाने की घोषणा की। पहला, गैर-अल्कोहलिक फैटी लीवर डिजीज के लिए एक फाइटोफार्मास्युटिकल दवा, जो सीएसआईआर-आईएचबीटी के सहयोग से विकसित की गई है और इसे थिमिस मेडिकेयर को लाइसेंस किया गया है। दूसरा, माईलैब डिस्कवरी सॉल्यूशंस के साथ किया गया एक लाइसेंसिंग समझौता, जो वैज्ञानिक अनुसंधान और ट्रांसलेशनल मेडिसिन को आगे बढ़ाने के लिए किया गया है। उन्होंने संस्थान में विकसित किए जा रहे चार प्रमुख औषधीय यौगिकों पर भी प्रकाश डाला। एस-011-1793, एक संभावित मलेरिया विरोधी यौगिक; एस-016-1348, कोलोरेक्टल कैंसर के लिए लक्षित उपचार; सीडीआरआई4-105, तंत्रिकाजन्य दर्द के इलाज के लिए समुद्री स्रोतों से प्राप्त यौगिक; और एस-019-0277, एक नवीन फाइलेरिया विरोधी यौगिक शामिल हैं।
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इस अवसर पर सीएसआईआर-सीडीआरआई ने वैज्ञानिक सहयोग और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण किया। कोलकाता स्थित सेंटर फॉर हाई इंपैक्ट न्यूरोसाइंस एंड ट्रांसलेशनल एप्लीकेशंस (सीएचआईएनटीए/चिंता) के साथ एक समझौता ज्ञापन किया गया, जिसके तहत अल्जाइमर रोग के लिए विशेष ब्रेन ऑर्गेनोइड विकसित किए जाएंगे। यह समझौता प्रोफेसर सुमंत्र शोना चटर्जी (निदेशक, चिंता), डॉ. राधा रंगराजन (निदेशक, सीएसआईआर-सीडीआरआई), डॉ. पीएन यादव (प्रमुख, न्यूरोसाइंस, सीएसआईआर-सीडीआरआई) और डॉ. नसीम सिद्दीकी (प्रमुख, बिजनेस डेवलपमेंट, सीएसआईआर-सीडीआरआई) के बीच औपचारिक रूप से संपन्न हुआ।
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सीएसआईआर-सीडीआरआई ने माईलैब डिस्कवरी सॉल्यूशंस, पुणे को स्वदेशी आरटी-पीसीआर किट की तकनीक सफलतापूर्वक हस्तांतरित की। यह किट डेंगू, चिकनगुनिया और जीका वायरस का तीव्र, सटीक और एक साथ निदान करने में सक्षम है। यह स्वदेशी रूप से विकसित आरटी-पीसीआर प्रोब का उपयोग करता है, जो आत्मनिर्भर भारत पहल के तहत आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है।
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इस अवसर पर, सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक, डॉ. राधा रंगराजन ने बताया कि संस्थान प्लेटिनम जुबली वर्ष में प्रवेश कर रहा है और अनुसंधान एवं औषधि खोज में क्रांतिकारी प्रगति के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहराता है। पिछले 74 वर्षों में, सीएसआईआर-सीडीआरआई ने जीवनरक्षक दवाओं के विकास, ट्रांसलेशनल रिसर्च और फार्मास्युटिकल नवाचारों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संस्थान अब संक्रामक रोगों, न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों, कैंसर उपचार और चयापचय रोगों में सफलता हासिल करने के लिए तैयार है, जिससे इसे चिकित्सा विज्ञान और नवाचार में एक अग्रणी संस्थान के रूप में और अधिक मजबूती मिलेगी।