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सैनोफी इंडिया : आरएसएसडीआई का टाइप 1 डायबिटीज प्रोग्राम दिखा रहा है सकारात्मक परिणाम


लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। रिसर्च सोसाइटी फॉर द स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया (आरएसएसडीआई) और सैनोफी इंडिया लिमिटेड (एसआईएल) ने बताया कि उनका टाइप 1 डायबिटीज (टी1डी) कार्यक्रम अच्छे नतीजे दे रहा है। इस कार्यक्रम से हाइपोग्लाइसेमिया और हाइपरग्लाइसेमिया के मामलों में कमी आई है, जिससे इलाज और निदान में सुधार हुआ है। इस पहल ने टाइप 1 डायबिटीज के इलाज के लिए एक वैश्विक मानक स्थापित करने में मदद की है, ताकि ऑटो-इम्यून और क्रॉनिक डायबिटीज का सही तरीके से प्रबंधन हो सके।

यह कार्यक्रम मरीजों, उनके परिवारों और स्वास्थ्यकर्मियों को टाइप 1 डायबिटीज के सही प्रबंधन पर शिक्षित करता है। इसके साथ ही, मुफ्त इंसुलिन, सीरींज, लैंसेट और ग्लूकोज़ स्ट्रिप्स के लिए भी फंडिंग दी जाती है। जिससे 1,400 से ज्यादा जरूरतमंद बच्चों को डायबिटीज के इलाज में मदद मिल रही है।

इस कार्यक्रम की मदद से हाइपोग्लाइसेमिया (जो हफ्ते में 1 से 4 बार होता था) से पीड़ित बच्चों की संख्या में 46% की कमी आई है। जबकि पहले यह आंकड़ा 70% था। इसी तरह, हाइपरग्लाइसेमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या में भी 25% की कमी हुई है, जबकि पहले यह 52% थी।
भारत में टाइप 1 डायबिटीज से जूझ रहे 1,400 से ज्यादा बच्चों में से 112 बच्चे उत्तर प्रदेश से हैं, जो इस सामाजिक प्रभाव वाले कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
इस स्थिति को जुवेनाइल या इंसुलिन-डिपेंडेंट डायबिटीज कहा जाता है। भारत में टाइप 1 डायबिटीज (टी1डी) से पीड़ित लोगों और उनके परिवारों के लिए इसे संभालना एक बड़ी चुनौती है। इसका मुख्य कारण यह है कि टी1डी के इलाज और प्रबंधन के लिए जरूरी प्रशिक्षित डॉक्टर, शिक्षक, पोषण-विशेषज्ञ और अन्य सहायक स्टाफ वाले केंद्र बहुत कम हैं।

इसके अलावा, टी1डी के बारे में जागरूकता की कमी, आर्थिक बोझ और खासकर ग्रामीण और उपनगरीय इलाकों में हेल्थकेयर सुविधाओं की कमी भी बड़ी समस्याएं हैं। इसमें देर से निदान, इंसुलिन का सही स्टोर न होना और मरीजों व उनके परिवारों को पर्याप्त जानकारी न मिल पाना जैसी समस्याएं भी शामिल हैं। समाज में टी1डी के मरीज, खासकर लड़कियां अक्सर अकेलापन महसूस करते हैं।

इस सामाजिक प्रभाव कार्यक्रम के जरिए स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच जागरूकता फैला रहे हैं, ताकि वे समय पर निदान कर सकें और हर मरीज को 3 साल तक का स्वस्थ जीवन वापस मिल सके। साथ ही इंसुलिन और टेस्ट स्ट्रिप्स की सही उपलब्धता और खुद को सही तरीके से संभालने से हर मरीज को 21.2 साल तक का स्वस्थ जीवन वापस पाने में मदद मिल सकती है।
इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, डायबिटीज के क्षेत्र में अग्रणी संस्था आरएसएसडीआई और सैनोफी इंडिया ने जनवरी 2021 में भागीदारी की थी। इस साझेदारी का उद्देश्य एक ऐसा सामाजिक प्रभाव कार्यक्रम बनाना था, जो बच्चों और युवाओं में टाइप 1 डायबिटीज के सही समय पर निदान और बेहतर प्रबंधन के लिए एक मानक उपचार स्थापित कर सके। इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए पीपुल-टू-पीपुल हेल्थ फाउंडेशन (पीपीएचएफ) को भागीदार बनाया गया।

डॉ. राकेश सहाय (एमडी, डीएनबी, डीएम एंडोक्राइनोलॉजी एंडोक्राइनोलॉजिस्ट और प्रेसिडेंट- रिसर्च सोसायटी फॉर द स्टाडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया) ने बताया कि भारत में करीब 8.6 लाख टाइप 1 डायबिटीज के मरीज हैं। इसलिए हम उन बच्चों की ज़रूरी देखभाल से ध्यान नहीं हटा सकते। इस कार्यक्रम के माध्यम से, स्वास्थ्य पेशेवरों और शिक्षकों को जरूरी उपकरण और जानकारी दी जा रही है। जिससे डायबिटीज का सही समय पर निदान और प्रबंधन संभव हो सके। यह बच्चों की सेहत के लिए बेहद जरूरी है।”

डॉ. संजय अग्रवाल (एमडी, एफएसीई, एफएसीपी
डा‍यबीटोलॉजिस्ट, सेक्रेटरी- रिसर्च सोसायटी फॉर द स्टहडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया) ने बताया कि “इस कार्यक्रम के लिए, आरएसएसडीआई और सैनोफी इंडिया अपनी विशेषज्ञताओं को मिलाकर एक वैश्विक स्तर का इलाज मानक तैयार कर रहे हैं, ताकि भारत में टाइप 1 डायबिटीज (टी1डी) का इलाज और भी सुलभ हो सके। आरएसएसडीआई भारत में टी1डी के इलाज को बेहतर करने के लिए पूरी तरह से समर्पित है।”
ग्लोबल टाइप 1 डायबिटीज इंडेक्स के अनुसार, भारत में टी1डी हर साल 6.7% की दर से बढ़ रहा है, जबकि टाइप 2 डायबिटीज 4.4% की दर से बढ़ रहा है।

इसी तरह, टाइप 1 डायबिटीज इंडेक्स1 के मुताबिक यूनाइटेड किंगडम में टी1डी हर साल 3.5% की दर से बढ़ रहा है, जबकि वहाँ टाइप 2 डायबिटीज के बढ़ने की दर 3.6% है। इधर यूनाइटेड स्टेबट्स में टाइप 1 डायबिटीज इंडेक्स के अनुसार टी1डी हर साल 2.9%, जबकि टाइप 2 डायबिटीज 4.5% की दर से बढ़ रहा है।
आरएसएसडीआई के इस सामाजिक प्रभाव कार्यक्रम को सैनोफी इंडिया का सहयोग मिला है, जिसका लक्ष्य भारत में प्रशिक्षित डॉक्टरों और टी1डी के शिक्षकों का एक नेटवर्क तैयार करना है। इस नेटवर्क के जरिए टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है।
प्रशिक्षित डॉक्टर सही समय पर निदान और प्रबंधन को सुनिश्चित करेंगे, जिससे मरीजों में स्थायी जटिलताएं कम होंगी। आरएसएसडीआई ने इसके लिए दो खास मॉड्यूल तैयार किए हैं – एक डॉक्टरों और टी1डी शिक्षकों के लिए, और दूसरा मरीजों और उनकी देखभाल करने वालों के लिए। हमारा मानना है कि इस प्रयास से टी1डी के मरीजों को बेहतर जीवन जीने में मदद मिलेगी।

अपर्णा थॉमस (सीनियर डायरेक्टॉर, कॉर्पोरेट कम्यु निकेशंस एण्डं कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉान्सिबिलिटी सैनोफी इंडिया) ने बताया कि “हमारे सामाजिक कार्यक्रम का प्रभाव देखकर हमें बहुत प्रेरणा मिली है। इस पहल की मदद से भारत में टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित कई बच्चों की जीवन गुणवत्ता में तेजी से सुधार हो रहा है। यह कार्यक्रम टाइप 1डायबिटीज के निदान, शिक्षा और सलाह देने के लिए एक मजबूत मानक बनाने पर केंद्रित है। इसका उद्देश्य डॉक्टर्स और शिक्षकों को प्रशिक्षित कर उनकी संख्या बढ़ाना है, ताकि टी1डी का सही समय पर निदान, इलाज और देखभाल आसानी से हो सके।
सैनोफी इंडिया का यह कार्यक्रम 1400से अधिक बच्चों को मुफ्त इंसुलिन देने के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान करता है, ताकि वे अपने टाइप 1डायबिटीज का सही तरीके से प्रबंधन कर सकें।”


डॉ. मनीष गुच (एमडी मेडिसिन, डीएम एंडोक्राइनोलॉजी
डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ एंडोक्राइनोलॉजी एण्ड डायबिटीज मेदांता हॉस्पिटल लखनऊ) ने बताया कि “टाइप 2 डायबिटीज की तरह, टाइप 1 डायबिटीज में भी बढ़ोतरी का रुझान देखा जा रहा है। हालांकि इसकी संख्या बहुत ज्यादा नहीं है, फिर भी यह चिंता का विषय है। टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित बच्चों की मुश्किलें कम करने के लिए सही इलाज, निगरानी, दवा की खुराक और इंसुलिन का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए, इसके बारे में व्यापक जानकारी और प्रशिक्षण होना बहुत जरूरी है। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्यकर्मियों और शिक्षकों को सही उपकरण और जानकारी देकर, हम इन बच्चों की जिंदगी में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।”