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हिंदी के विकास हेतु नवीनतम तकनीक का करें उपयोग : डॉ. भीमराय मेत्री

हिंदी विवि में ‘विकसित भारत@2047: वैश्विक परिप्रेक्ष्य  में हिंदी’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी

वर्धा (टेलीस्कोप टुडे डेस्क)। इस वर्ष विश्व हिंदी दिवस का थीम है- पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम बुद्धिमत्ता को जोड़ना। हम सब जानते हैं कि भारत का प्राचीन पारंपरिक ज्ञान समृद्ध है। इस ज्ञान के कारण आज भी हमें विश्व में सम्मान प्राप्त होता है। इस ज्ञान की सबसे बड़ी धरोहर आज भी हिंदी के पास है और इसका विस्तार तकनीक के बिना संभव नहीं है। इसलिए विकसित भारत की संकल्पना को ध्यान में रखकर सूचना प्रौद्योगिकी के साथ नवीनतम तकनीक का उपयोग करते हुए हिंदी में नवीन ज्ञान परंपरा में श्रीवृद्धि करनी होगी। इससे न केवल हिंदी का विस्तार होगा बल्कि हमारे पारंपरिक ज्ञान से दुनिया नए तरीके से रु-ब-रु हो सकेगी। हिंदी का विश्वविद्यालय होने के नाते हम सभी का यह दायित्व  है कि हिंदी भाषा और पारंपरिक ज्ञान को आगे बढ़ाने में सहभागी बनें। उक्त उद्बोधन महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. भीमराय मेत्री ने व्यक्त किये।

डॉ. मेत्री विश्वविद्यालय में विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘विकसित भारत@2047’ के अंतर्गत ‘विकसित भारत@2047: वैश्विक परिप्रेक्ष्य  में हिंदी’ विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी  की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। हिंदी भाषा के प्रसार का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आज हिंदी विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। भारतीय संस्कृति परिषद् के एक आंकड़े के अनुसार वर्तमान में दुनिया के शताधिक देशों में हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है, इसी से हिंदी भाषा की ताकत का पता चलता है। इस ताकत को और बढ़ाने के लिए वर्ष 2006 से हम 10 जनवरी को हिंदी दिवस मनाते चले आ रहे हैं।

इस अवसर पर अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो.कृष्ण कुमार सिंह ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहाकि हम वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी को स्थापित करने में सफल हो रहे हैं लेकिन एक स्याह पक्ष यह भी है कि हिंदी में विश्व-स्तरीय ज्ञान का अभाव है। ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अंग्रेजी के वर्चस्व को चुनौती देनी होगी तथा हिंदी भाषा में ज्ञान-विज्ञान और मौलिक चिंतन को बढ़ावा देना होगा।   

मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि जैसे-जैसे भारत विकसित होगा, भारतीय भाषाएं भी विकसित होंगी। आज वही भाषा तेजी से बढे़गी जो डिजिटल दुनिया में संपूर्ण वांग्मय,भाषिक उपलाब्धियों के साथ दर्ज होंगे। हिंदी ने अपनी उपयोगिता दर्ज करायी है। भारत विश्व का सबसे बड़ा बाजार है और विश्व में भारतीय पेशेवरों की मांग भी बढ़ रही है। आज भारत में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में 67 प्रतिशत विज्ञापन हिंदी को मिल रहा है। इतना सब होते हुए भी हिंदी को अंतरराष्ट्रीय मंच यू.एन. में आधिकारिक स्थान नहीं मिल पाया है, उन्होंने कहा कि हिंदी जगत संगठित नहीं है इसलिए सुनवाई नहीं हो रही है। अतएव सहभाव और सौमनस्य के साथ विकसित भारत के लिए हिंदी भाषा की भूमिका के संदर्भ में सोचने की जरूरत है।   

दिल्ली विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त आचार्य प्रो. केएन तिवारी ने तुर्की, पौलेंड और चीन में हिंदी की स्थिति पर आशाजनक टिप्पणी की। ऑकलैण्ड, न्यूजीलैण्ड की सुश्री सुनीता नारायण ने न्यूजीलैंड में हिंदी के विकास और उसके प्रसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें उच्चायोग सहयोग प्रदान करता है, यहां पर हिंदी को केंद्र में रखकर कई प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। हिंदी विश्वविद्यालय में अध्ययनरत श्रीलंका के शोधार्थी प्राध्यापक ब्रजील नागाड बिथाना ने कहा कि दुनिया में अंग्रेजी भाषा के मापन के लिए आई ई एल टी एस, टॉफल, कॉमन यूरोपियन फ्रेमवर्क आदि हैं लेकिन हिंदी भाषा दुनिया में सबसे अधिक लोगों के द्वारा बोली जानेवाली भाषा है फिर भी वैश्विक स्तर पर उसके मापन के लिए कोई कसौटी या मापदंड नहीं है। इसलिए भारत के विद्यार्थी कोई भी उपाधि या प्रमाणपत्र लेकर बाहर जाता है तो उसे स्वीकार नहीं किया जाता, इस पर हमें चिंतन करने की जरूरत है। तुलनात्मक साहित्य विभाग के अध्य क्ष डॉ. रामानुज अस्थाना ने हिंदी की वैश्विक स्थिति पर चर्चा की।

स्वागत वक्तव्य‍ में संगोष्ठी के संयोजक साहित्य विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. अखिलेश कुमार दुबे ने कहा कि किसी भी देश की पहचान उसकी भाषा होती है। हिंदी अपने दम पर विश्व में आगे बढ़ रही है। विश्वविद्यालय के हिंदी साहित्य विभाग की प्रो.प्रीति सागर ने संचालन तथा एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्जिवलन, कुलगीत से हुआ तथा राष्ट्रगान से समापन हुआ। सूतमाला एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर मंचस्थ अतिथियों का स्वागत किया गया। ऑनलाइन तथा ऑफलाइन आयोजित कार्यक्रम में हम्बुर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी के डॉ. रामप्रकाश भट्ट, अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के सह-संयोजक अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा अध्ययन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. रवि कुमार, हिंदी साहित्य विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. रूपेश कुमार सिंह सहित विश्वविद्यालय के अधिष्ठातागण, विभागाध्यक्ष, अध्यापक, कर्मचारी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।