दो अक्टूबर का दिन था खास
आया था धरती पर माटी का लाल
सरल सहृदय कद था छोटा
पर शख्सियत रही विशाल
माटी का वो लाल सदा
माटी से ही जुडा रहा ।
गुजरा बचपन अभावो मे
पर हार कभी न मानी
चित्रगुप्त थे वंशज जिसके
कलम का रहा वो सदा पुजारी
मेहनत एक दिन रंग लाई
देश की सत्ता हाथ मे आई
भूला नही वो संघर्ष का जीवन
अमीरी उसे कभी रास न आई
सादा जीवन उच्च विचार
यही था उसके जीवन का आधार
देश के दो है आधार स्तंभ
एक जवान और एक किसान
सीमा पर डटा रहा जवान
खेतो मे खड़ा रहा किसान
तब ही जीवित रहा देश का इंसान
पहचानी कीमत दोनो की
माटी के इस लाल ने
दे दिया नारा फिर देश को
जय जवान जय किसान
युद्ध का जब बिगुल बजा
देश की रक्षा की खातिर
समझौते पर हस्ताक्षर किया
ताशकंद की धरती पर
सदा सदा के लिए सो गया
भारत रत्न से सम्मानित
पहला भारतीय वो शख्स रहा
नमन सदा इस महापुरुष को
माटी का ये लाल माटी मे समा गया।
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