लोक चौपाल में गूंजे पारम्परिक होली गीत
लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। लोक संस्कृति शोध संस्थान की 84वीं लोक चौपाल में फाग के लोकरंग पर परिचर्चा के साथ पारम्परिक होली गीतों की मनभावन प्रस्तुति हुई। बुधवार को रवीन्द्रालय परिसर में चल रहे लखनऊ पुस्तक मेला के सांस्कृतिक मंच पर चौपाल चौधरी पद्मा गिडवानी की अध्यक्षता और प्रभारी अर्चना गुप्ता के संयोजन में फागुनी बयार बही। मचो फाग घनघोर आज होरी झूम री का समवेत स्वर गूंजा।
संस्थान की सचिव डा. सुधा द्विवेदी ने विषय प्रवर्तन करते हुए रंग पर्व के लोक सरोकार, लुप्त हो रहे फगुआ और जोगीरा के रंग पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ लोक गायिका पद्मा गिडवानी ने होली गीतों में प्रकट लोक मनोभावों का चित्र उकेरा।

सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में वरिष्ठ लोक गायिका नीरा मिश्रा ने मैंने कछु ना कही मोहे सांवरे ने गारी दई, पद्मा गिडवानी ने करें जब पांव खुद नर्तन समझ लेना की होरी है, अरुणा उपाध्याय ने बसंती रंग चुनरी पहन मुस्काई, प्रो. उषा बाजपेई आज होली नये रंग की, अर्चना गुप्ता ने मोरे रंग न डारो सांवरिया, आशा श्रीवास्तव ने मोपे जबरन रंग दियो डार, अनुज श्रीवास्तव ने गिरधारी लाल होरी खेलें कुंजन की गली, अलका चतुर्वेदी ने रंग डारुंगी नन्द के लालन पे, सुषमा प्रकाश ने बरजोरी रंग डाली मोरी सारी रे सुनाया।
अथर्व, गुनाश्री, संस्कृति और अव्युक्ता ने नृत्य गुरु निवेदिता भट्टाचार्य के निर्देशन में रंग रंग दे रंग पर मनमोहक नृत्य किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डा. करुणा पांडे, मनोरमा मिश्रा, मीना मिश्रा, रंजना शंकर, उषा पांडिया, दिलीप श्रीवास्तव, कान्ति लाल शाह, गौरव गुप्ता, प्रो. सीमा सरकार, मंजुल रायजादा, ज्योति किरन रतन आदि उपस्थित रहे। सचिव डा. सुधा द्विवेदी ने बताया कि लोक संस्कृति शोध संस्थान की ओर से दिल्ली विश्वविद्यालय के संगीत विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डा. स्मृति त्रिपाठी के निर्देशन में होली गीतों की आनलाइन कार्यशाला 6 मार्च से की जा रही है। जिसमें 54 प्रतिभागी पारम्परिक फाग गीतों का प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे।