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सपनों से दूर करती यह कैसी पढ़ाई…

अतुल मलिकराम (लेखक एवं राजनीतिक रणनीतिकार)

  • किताबी ज्ञान तक सीमित हमारी शिक्षा नीति और इंडस्ट्री के लिए जरुरी कौशल के बीच की खाई

भारत के हलचल और महत्वाकांक्षाओं से भरे एक शहर में, आन्या रहती है। आन्या 20-22 साल की एक होनहार बालिका है, जिसने हाल ही में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया है। ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद अब वह एक अच्छी-सी नौकरी चाहती है। पढ़ाई पूरी होने के बाद नौकरी की चाह रखने वाली वह कोई अकेली बालिका नहीं है, बल्कि यह तो देश के हर पढ़े-लिखे युवा का सपना है। घर से दूर रह कर, दिन-रात एक करके उसने अपनी पढ़ाई पूरी की थी। उसकी यह डिग्री, कड़ी मेहनत और किताबों में दबी हुई अंतहीन रातों का परिणाम थी। कई लोगों की तरह उसका भी मानना था कि उसकी डिग्री उसके सपनों को साकार करने की राह खोलेगी। लेकिन जब वह वही डिग्री के भरोसे अपनी मनपसंद नौकरी लेने पहुँची, तो उसे पता चला कि इतने साल जिस डिग्री के लिए उसने दिन-रात एक किए, लोन लेकर फीस भरी, घर से दूर रही, वह डिग्री, वह पढ़ाई उस नौकरी को पाने के लिए काफी नहीं है, जिसका उसने सपना देखा था। नौकरी के लिए ऐसे कौशल की जरुरत है, जो उन्हें कभी सिखाया ही नहीं गया।

इसमें दोष इन युवाओं का नहीं है, बल्कि हमारी शिक्षा प्रणाली ही कुछ ऐसी है, जो रटंत विद्या और नंबरों पर जोर देने के चक्कर में छात्रों को आधुनिक उद्योगों की नई-नई माँगों के हिसाब से तैयार करने में विफल है। हर साल देश की युनिवर्सिटीज़ से हजारों युवा ग्रेजुएट होकर निकलते हैं, फिर भी उनमें से अधिकतर बेरोजगारी से जूझते हैं या फिर बेमन से कोई छोटी-मोटी नौकरी करते हैं, फिर उनके लिए यह भी मायने नहीं रखता कि जो नौकरी उन्हें मिली है, वह उनकी फिल्ड की है भी या नहीं। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ऐसे उम्मीदवारों की तलाश करती हैं, जो गंभीर रूप से सोच सकें, जल्दी से अमल कर सकें और जिनके पास व्यावहारिक अनुभव हो। ये कुछ ऐसे गुण हैं, जिन्हें पारंपरिक शिक्षा प्रणालियाँ अक्सर नज़रअंदाज़ कर देती हैं।

इस समस्या का कारण किताबी ज्ञान तक सीमित हमारी शिक्षा नीति और इंडस्ट्री के लिए जरुरी कौशल के बीच की खाई है। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट के अनुसार, केवल 46% भारतीय ग्रेजुएट ही रोजगार के लिए तैयार हैं। यह आँकड़ा एक गंभीर वास्तविकता को दर्शाता है। हमारी शिक्षा प्रणाली उद्योग की माँगों के अनुरूप नहीं है। टेक्नोलॉजी में तेजी से प्रगति और नौकरियों की लगातार विकसित हो रही प्रकृति के लिए ऐसे लोगों की आवश्यकता है, जो चुस्त हों, लीक से हटकर सोचते हों और नई मशीनों और टेक्नोलॉजी में कुशल हों। जबकि हमारे युवा आज भी बरसों पहले बने सिलेबस पर ही अटके हुए हैं, जिसमें कोई नयापन नहीं है।

अपने कई साथियों की तरह, आन्या को भी इस कड़वी सच्चाई का एहसास बहुत देर से हुआ। कॉलेज सर्टिफिकेट में ए ग्रेड पाने के बावजूद, उसमें उस व्यावहारिक ज्ञान की कमी थी, जो कम्पनियाँ वास्तव में चाहती थीं। कोडिंग लैंग्वेज, डेटा एनालिसिस टेक्निक्स, कम्यूनिकेशन और टीम वर्क जैसी सॉफ्ट स्किल्स उसके कॉलेज सिलेबस का कभी हिस्सा रहीं ही नहीं। इसका खामियाजा आज आन्या को भुगतना पड़ रहा था। उसके मन में एक ही प्रश्न था कि आखिर गलती किसकी है?

शिक्षा और रोजगार के बीच के इस बेमेल का युवाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। संभावनाओं और सपनों से भरपूर देश के युवा खुद को अस्वीकृति और निराशा के चक्र में फंसा हुआ पाते हैं। एक स्थिर नौकरी पाने के लिए समाज और परिवार का दबाव स्थिति को और खराब कर देता है। बेरोजगारी से जुड़ा सामाजिक कलंक उन्हें शर्मिंदा करता है और युवाओं के मन में निराशा का भाव पनपने लगता है।

आन्या का किस्सा ही ले लीजिए, उसके माता-पिता को उससे बड़ी उम्मीदें थीं। आप खुद ही सोचिए कि उन्होंने उसे कॉलेज तक पहुँचाने के लिए क्या कुछ त्याग नहीं किया होगा। क्यों? क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि बिटिया पढ़ने में होनहार है। उसकी नौकरी लग जाएगी, तो वह उसकी पढ़ाई के लिए लिया हुआ सारा कर्ज उतार देगी। साथ ही, वह पूरे परिवार का भविष्य भी संवार देगी। हर दिन जब वह बिना नौकरी के घर लौटती थी, तो यह उसे यह एक हार की तरह महसूस होता था। यह हार उसके ऊपर एक बोझ बनती जा रही थी, जिसे वह चुपचाप ढोती जा थी। अधूरी उम्मीदों का बोझ और अनिश्चित भविष्य का डर उसकी आत्मा को कचोट रहा था। अगर आन्या को उसकी पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी पाने के लिए जरुरी गुर भी सिखाए गए होते, तो आज वह भी किसी अच्छी कंपनी में नौकरी कर रही होती। उसकी सालों की मेहनत और उसके माता-पिता की खून पसीने की कमाई ऐसे बर्बाद न हुई होती।

आन्या जैसे युवाओं से मैं बस यही कहना चाहता हूँ कि एक हार पर जिंदगी खत्म नहीं हो जाती। मानता हूँ कि आगे का रास्ता कठिन है, लेकिन यह मत भूलिए कि सफल होने का दृढ़ संकल्प भी अटल है। आजीवन सीखने और अपने कौशल को लगातार अपडेट करने से, नौकरी की उथल-पुथल से बखूबी निपटा जा सकता है।

साथ ही, यह कहानी फिर किसी युवा के साथ न दोहराई जाए, इसके लिए जरुरी है कि हमारी शिक्षा नीति को अपडेट किया जाए। उसमें आज की जरुरत के हिसाब से नया कोर्स जोड़ा जाए, जो युवाओं को आज की नौकरियों की जरुरत के हिसाब से तैयार कर सके। इसके लिए सरकार, शैक्षणिक संस्थानों, उद्योगों और स्वयं छात्रों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। जैसे-जैसे राष्ट्र आगे बढ़ रहा है, एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का सपना जो वास्तव में अपने युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करती है, दूर की कौड़ी नहीं है। बस कमी है थोड़े से प्रयास की, तो क्यों न यह थोड़ा-सा प्रयास करके इन युवाओं का भविष्य निराशा की गर्त में जाने से रोका जाए और देश के लिए भी एक उज्जवल भविष्य बनाया जाए?

(अतुल मलिकराम लेखक एवं राजनीतिक रणनीतिकार हैं और ये उनके निजी विचार है)