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सनातन को सबसे ज़्यादा खतरा झूठ को सच की थाली में परोसने वालों से है : पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ

■ योगिराज गंभीरनाथ सभागार में आयोजित हुई लोकमत परिष्कार संगोष्ठी

■ प्रख्यात राष्ट्रवादी पत्रकार पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने रखे विचार

गोरखपुर (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। लोक जागरण मंच गोरखपुर के द्वारा ‘मतदान हमारा अधिकार भी परम कर्तव्य भी’ विषयक लोकमत परिष्कार संगोष्ठी का आयोजन स्थानीय योगिराज गंभीरनाथ सभागार में किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन व भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन से हुई। 

कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत एवम परिचय कार्यक्रम संयोजक ई. अरुण प्रकाश मल्ल ने किया। वहीं अतिथियों का सम्मान कार्यक्रम के सह संयोजक डॉ. राजेश चंद्र गुप्त विक्रमी ने किया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता राष्ट्रवादी चिंतक, विचारक एवं पत्रकार पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने अपने विचार रखते हुए कहाकि मैंने यह सफर लगभग बारह साल पहले इसलिए शुरू किया क्योंकि मेरा कठोर विरोध झूठ को सच की थाली में रखकर परोसने वालों से है। सनातन को सबसे ज़्यादा खतरा नकली मक्कार लालची और दलाल हिंदुओं से है जिन्होंने समाज को केवल झूठ परोसा है। भारतीय राजनीति का बेसिक फंडामेंटल है कि राजनीतिक पद मिलते ही सच बोलना बंद कर दो। आज विषयों की जानकारी से रहित सनातनी हिन्दू समाज झूठ से पीड़ित है क्योंकि जिस दिन उसने सच बोलना सीख लिया उस दिन वह विश्व की अद्वितीय शक्ति बन जायेगा। 

उन्होंने कहा कि संचार क्रांति के इस युग में इन्फॉर्मेशन फ्री ऑफ कॉस्ट है और पीढ़ी के अंतर से उत्पन्न संवादहीनता के अभाव के कारण आज अपनी पीढ़ी में ही विरोधाभास हो रहा है। मैगी और पीजा खाने वाली जेनरेशन से संवाद करना है तो सत्तू पीने वाली जेनेरेशन का हठ छोड़ना होगा। आपको उनसे लघु संवाद करना होगा। उन्होंने कहा कि ये भ्रम किसने फैलाया कि सारे धर्म समान है। ये एकदम झूठ है। क्योंकि धर्म शब्द की व्याख्या ही समाज के डरपोक होने के कारण बिगाड़ दिया गया। धर्म आपके कर्तव्य का पर्याय है। कायरता और डर के कारण शब्दों का अर्थ बिगाड़ कर बचाव नहीं हो सकता। आंखें बंद कर लेने से खतरा टल नहीं जाता।

उन्होंने कहा कि सब्जेक्ट को सब्जेक्ट की तरह पढ़ें तो आप सच बोल पाते हैं। गीता या कुरआन को भावनात्मक होकर पढ़ने की बजाय तर्क और तथ्य के साथ पढ़ें तो आप सत्य का अन्वेषण कर पाएंगे। 

दुनिया के किसी भी ऐतिहासिक ग्रन्थ में नहीं लिखा कि भारत जाति प्रधान देश है। यह झूठ भी भारत के झूठे नेताओं का गढ़ा है। जिनको अपने पुरखों का नहीं पता वे अपनी जाति को लेकर आरक्षण की मांग में उलझे हुए हैं।  अंग्रेज इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि भारत की सामाजिकता का तानाबाना जाति व्यवस्था से जुड़ा हुआ है। इसलिए उन्होंने इसका फायदा उठाया और आज भी मक्कार इतिहासकार ऐसा ही कर रहे हैं। ईमानदारी कपड़ों, पैसों या अंग्रेज़ी बोलेने से नहीं आती। 2014 में ब्रिटेन के अखबार गार्डियन ने अपने सम्पादकीय में लिखा कि भारत से अब जाकर ब्रिटिश राज वास्तव में समाप्त हो गया। यह सच बोलने की हिम्मत उनमें थी पर हममें नहीं। 

हमें समझना होगा कि दो रुपये किलो राशन और फ्री की बिजली की बजाय सनातन सभ्यता को सुदृढ़ करने के मुद्दे पर वोट देना ज़्यादा ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि सत्ताओं को अपनी सीमाओं के अंदर ही रहना चाहिए। लेकिन अगर राष्ट्र को तोड़ने वाली शक्तियों से लड़ना है तो सीमाओं को तोड़ना पड़ता है। क्योंकि जूता मजबूत हो तो सबकुछ समझ में आता है। 

 संचार क्रांति के युग में अगर आप तथ्यों से रहित हैं तो ये आपकी गलती है। 15 अगस्त 1947 को केवल शक्ति का हस्तांतरण हुआ था। ब्रिटिश आर्काइव के दस्तावेजो में कहीं भी स्वतंत्रता का ज़िक्र नहीं है। शक्ति का हस्तांतरण भला स्वतंत्रता कैसे हो सकता है ? ये आज तक का बोला गया एक और बड़ा झूठ है। पुलिस प्रशासन और वर्तमान विधि व्यवस्था अंग्रेजी कानूनी की फोटोकॉपी है और आज भी उनकी ही मानसिकता से युक्त तंत्र से संचालित हो रही है। 

एक झूठ और है कि भारत सेकुलर राष्ट्र है। संविधान सभा मे जब सेकुलर शब्द पर बहस हुई तो सबसे बेहतर आर्गुमेंट डॉ. अम्बेडकर का था। उन्होने कहा कि भारत की मिट्टी में और भारतीयों के खून में यह भावना है। इसलिए ये शब्द लाने की आवश्यकता नहीं। भारत ने हर प्रकार की पूजा पद्धति को स्वीकार किया है। इन सबके बावजूद अलोकतांत्रिक रूप से संविधान की प्रस्तावना तक को बदल दिया गया। नैरेटिव बनाने से झूठ सच बन जाता है। 1976 के संविधान में धर्मनिरपेक्ष जैसा कोई शब्द नहीं है। बल्कि पंथनिरपेक्ष शब्द है। हम धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकते क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो अराजकता फैल जाएगी। 

2002 में प्रधानमंत्री अटल जी के गुजरात दौरे के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री को उन्होंने राजधर्म की सीख दी थी। राजधर्म सत्ता का धर्म है जो उसके कर्तव्य से बनता है। धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त अगर लागू हो तो राजा राजधर्म का पालन ही नहीं कर सकता। यह एक अराजकतावादी अवधारणा है। आपने इस कायरता को छिपाने के लिए खुद को सहिष्णु बताना शुरू कर दिया। आपकी सहिष्णुता आपके घर के संपत्ति के विवादों में मर जाती है, महिलाओं पर हिंसा पर क्यों मर जाती है यह सोचना पड़ेगा। 

सरनेम या जाति आपकी निजी पहचान है कोई राष्ट्रीय पहचान नहीं है। यह योग्यता का पर्याय नहीं है। और आपकी निजी पहचान केवल घर की देहरी तक है। इसे सार्वजनिक पहचान न बनाइये। आपकी एक ही राष्ट्रीय पहचान है और वह है सनातनी। 

सच बोलने से नेता को वोट नहीं मिलता। वोट पाने के लिए झूठ बोलना पड़ता है। नेता समाज को तय कर रहा है जबकि समाज को नेता तय करना चाहिए। आप इतने सस्ते में बिकते क्यों हैं ? आपने खुद की कीमत क्यों तय की ? सोचिए कि फ्री के चावल, फ्री की साड़ी और फ्री की बिजली पर कोई नेता आपको कैसे खरीद लेता है और आपको बिकते हुए शर्म क्यों नहीं आती ? आप आज इग्यारहवें दर्जे के सनातनी हिन्दू बन चुके हैं। 

सरकार के सभी अंग वेतनभोगी हैं। वे केवल सरकार का काम करते हैं। वे देश नहीं चलाते, राष्ट्र नहीं चलाते। राष्ट्र को केवल समाज चलाता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय सेना के वेटरन अधिकारी मेजर जनरल (रि.) शिव जसवल ने की। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि मतदान को अधिकार समझने की बजाय सदैव अपना कर्तव्य समझना चाहिए। जिसदिन हम इसे अपना कर्तव्य मान लेंगे उसी दिन से लोकतंत्र की शुद्धिकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।  

इस अवसर पर पद्मश्री आरसी चौधरी, प्रांत संघ चालक डॉ. महेंद्र अग्रवाल, प्रांत प्रचारक रमेश, विभाग प्रचारक अम्बेश, आयोजन समिति के डॉ. आशीष श्रीवास्तव, प्रो. सत्यपाल सिंह, शैवाल शंकर, डॉ. देवेज्य, शुभेन्द्र सत्यदेव, गौरव, दीपक गुप्ता, हरेकृष्ण सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्ध गणमान्य श्रोता व नागरिक उपस्थित रहे।