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भाषाएं सामाजिक धरोहर, इन्हें संरक्षित किये जाने की आवश्यकता : विनय श्रीवास्तव

राष्ट्रवादी चेतना में भाषाई योगदान विषय पर संगोष्ठी सम्पन्न

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान द्वारा विविध भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार के क्रम में आज संस्थान द्वारा इन्दिरा भवन स्थित परिसर में आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘‘राष्ट्रीय चेतना में भाषाई एकता‘‘ विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का शुभारंभ लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. ऊषा सिन्हा, वरिष्ठ विद्वान डॉ. रामवृक्ष सिंह, डॉ. जहॉआरा गुल, रश्मि शील एवं संस्थान निदेशक विनय श्रीवास्तव द्वारा मॉ शारदे के समक्ष द्वीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण कर किया गया।

संगोष्ठी में पधारे विद्वानों ने संस्थान के इस प्रयास की सामूहिक रूप से सराहना की और एकमत से कहा कि भाषा संस्थान ने भारतीय भाषाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण प्लेटफॉर्म प्रदान किया है।

संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव ने ‘‘राष्ट्रीय चेतना में भाषाई एकता” अपने विचारों के माध्यम से एक नए दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया। उन्होंने भाषाओं के महत्व को समझाया और बताया कि भाषाएँ हमारे समाज में सामर्थ्य और समृद्धि की मुख्य स्रोत होती हैं। उन्होने भाषायी एकता और विविधता के संरक्षण के प्रति भी बल देते हुए कहाकि भाषाएँ समृद्धि के पथ पर एक समर्थक की भूमिका निभा सकती हैं और सही दिशा में प्रेरित कर सकती हैं। उन्होंने भाषाओं के संवाद में संवेदनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल देते हुए बताया कि भाषाएँ न केवल शब्दों का संग्रह होती हैं, बल्कि वह हमारे भावनाओं और विचारों को साझा करने का एक माध्यम होती हैं। विविध भाषा-भाषी जनसमूह को जोड़ने का कार्य करती हैं। भाषाएँ हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं, जिन्हें हमें साथ मिलकर संरक्षित रखना होगा।

संगोष्ठी में प्रो. उषा सिन्हा ने कहा कि हमारे देश में सांस्कृतिक विविधता के चलते कई भाषाएँ बोली जाती है। इस संगोष्ठी ने हमें एक साथ आने के महत्व को समझाया है। यह भी बताया कि भाषाएँ हमारे संवाद का माध्यम होती हैं और यह देश की एकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, हमें अपनी भाषा के प्रति गर्व महसूस करना चाहिए। परंतु यह गर्व हमें दूसरी भाषाओं के प्रति समझदारी और समरसता के साथ मिलना चाहिए। रश्मि शील ने संगोष्ठी में भाषाओं के मध्यस्थ भूमिका के विषय में बताया कि भाषाओं के बीच संवाद में दोस्ती की भावना होनी चाहिए। उन्होंने कहाकि भाषा सिर्फ शब्दों का संग्रह ही नहीं होती, बल्कि वह हमारे विचारों को आपसी रूप से समझाने का एक माध्यम होती है।

डॉ. जहां आरा गुल ने भाषाओं के माध्यम से सामाजिक समस्याओं के समाधान की महत्वपूर्ण भूमिका पर बात की। उन्होंने बताया कि भाषाएँ हमें दिल की गहराइयों से जोड़ती हैं और हमें समस्याओं के समाधान की ओर ले जाती हैं।

डॉ. रामवृक्ष ने संगोष्ठी में भाषाओं की भूमिका को साहित्य के माध्यम से बताया और उन्होंने साहित्य के माध्यम से हमारी सोच और दृष्टिकोण को कैसे प्रभावित किया जा सकता है वह दिखाया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चेतना में भाषाई एकता संगोष्ठी ने हमें यह सिखाया कि हमारी भाषाएँ हमारी पहचान होती हैं और उन्हें समझने, समर्थन करने, और साझा करने की आवश्यकता है। संगोष्ठी में दिनेश कुमार मिश्र, अंजू सिंह, आशीष वार्ष्णेय, हर्षराज, रामहेतपाल, बृजेश, प्रियंका, छाया आदि उपस्थित रहे।