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अवधी कृति अकास मा उड़ान का लोकार्पण

तीर्थ यात्रा है जीवन : प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित

▪️पद्मश्री विद्या विन्दु सिंह और प्रो. दीक्षित सम्मानित

लखनऊ। ‘‘हमारी संस्कृति में जीवन एक तीर्थ यात्रा है, जिसके चार पड़ाव हैं- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास। जीवन के अधिकांश अनुभव, हर परिस्थिति में सामंजस्य और जीवन यापन का अभ्यास यात्राओं से मिलता है। इस दृष्टि से यात्रा वृत्तांत साहित्य की महत्वपूर्ण विधा है।‘‘ ये विचार प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने शनिवार को इंजी. रमाकांत तिवारी ‘रामिल‘ के अवधी यात्रा वृत्तांत ‘अकास मा उड़ान’ के लोकार्पण समारोह में व्यक्त किये। हिन्दी संस्थान के निराला सभागार में अवध भारती संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रभाराम स्मृति अवधी सम्मान प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित और सीतादेवी स्मृति अवधी सम्मान पद्मश्री डॉ. विद्याविन्दु सिंह को दिया गया। जिसके अन्तर्गत ग्यारह हजार रूपये की धनराशि, अंगवस्त्र और सम्मान पत्र प्रदान किया गया।

यात्रा वृत्तांत लेखक रामिल ने पुस्तक के संदर्भ में चर्चा करते हुए कहा कि इसमें सिंगापुर, वियतनाम, कम्बोडिया और थाईलैण्ड की यात्राओं का अवधी भाषा में यात्रा संस्मरण है।

मुख्य अतिथि पद्मश्री डॉ. विद्याविन्दु सिंह ने पुस्तक के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह कृति अवधी गद्य साहित्य की अनूठी पुस्तक है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. राम बहादुर मिश्र ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि अवधी साहित्य की वृद्धि में यह यात्रा वृत्तांत निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगा। इसमें चार देशों के ऐतिहासिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक संदर्भा की महत्वपूर्ण जानकारी समाहित है।

समारोह को सम्बोधित करते हुए डॉ. चम्पा श्रीवास्तव ने कहा कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपने प्रसिद्ध निबंध ‘अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा‘ में घुमक्कड़ी को एक धर्म बताया है। उन्होंने कहा कि यह रामिल जी का अवधी प्रेम है कि उन्होंने अपना यात्रा वृत्तांत विस्तारपूर्वक लिखकर इसे अवधी भाषा में प्रकाशित कराया। राष्ट्रधर्म के प्रबंध निदेशक पवन पुत्र बादल ने कहा कि इस पुस्तक में चार देशों के धर्म, इतिहास, सामाजिक चेतना और भौगोलिक संदर्भों को बहुत ही लालित्यपूर्ण भाषा अवधी में लिख कर हमारे समक्ष प्रस्तुत किया गया है, यह विशेष रूप से उल्लेखनीय तथ्य है। डॉ. शिवप्रकाश अग्निहोत्री ने कहा कि इस यात्रा वृत्तांत में अवधी बोली-बानी की कला, बिम्ब व प्रतीक आदि बहुत ही जीवंत हो उठे हैं। डॉ. संतलाल ने कहा कि अवधी यात्रा वृत्तांत के दृष्टिगत संभवतः यह पहली पुस्तक है, जो प्रभावशाली और महत्वपूर्ण है। समारोह में डॉ. विनयदास, डॉ. सत्या सिंह सहित अन्य विद्वानों ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन और आभार ज्ञापन प्रदीप सारंग ने किया। इस अवसर पर महेन्द्र भीष्म, विजय त्रिपाठी, डा. मंजु शुक्ला, डॉ. अरविन्द पाण्डेय मो. मूसा खान, आचार्य निशिहर, अंजनी अमोघ, इन्द्रेश भदौरिया, अवध भारती संस्थान के उपाध्यक्ष विश्वभर नाथ अवस्थी, लोक संस्कृति शोध संस्थान की सचिव सुधा द्विवेदी, कवयित्री अर्चना गुप्ता सहित अन्य उपस्थित रहे।