सुजीत कुमार सिंह
ये स्वभाव का प्रभाव है कि उनके अश्थि-पंजर स्वयं ढीले हो गए हैं। औषधि प्रयास पर अब रणकेश्वर चलते बसंत हैं पर अब अपने शेषावतार से अपने अधीन हज़ारों लोग पर उनका गुस्सा बिहार जारी है। सही हो या गलत अंत तुरंत है। उनकी कलम है कि निशान गुणे का ही लगाती है जीवन को जीवन नहीं नन्हीं सी मृत्यु बताती है। कुछ दिन पहले वे भी मिसिर जी के पद प्रत्यासी थे। कोने से मन कुनकुना रहा था, शायद शायद सिकहर टूट जाये पर सबकुछ अनुत्तीर्ण रहा, सपना अपना न हुवा। कार्य गति और दंड गति सहित, सहित बढ़ती है। चूंकि उनका पद सर्वोच्च है लिहाजा कटिंग, फिटिंग में महराज को हालचाल नीति नियंता बता आये सर, 000000 सर को बैठकर काम करने में बड़ी परेशानी है, आजीवन रहेगी भी, दायित्वबोध नही ले सकते, म्यान से काट आये। चूंकि पद बड़ा है और तिवारी जी भी स्थायी अवकाश पर तैयार हैं सो लोगों में आस की प्यास ऑक्सीजन पाने लगी है।
आशा अब विश्वास हो गया है कि उनके यहां से उतरने के बाद ठहरा चक्का शायद यहां चलने लगे, पर हाँ वहां जरूर रुक जाएंगा ? लोगों का यही गणित चर्चा में पठित है|