Thursday , December 5 2024

आँखों सुनी कानों देखी


(वरिष्ठ पत्रकार सुजीत कुमार सिंह)

कहते हैं पुण्य की सत्ता हमेशा स्वीकृत रहती है। पुण्य आत्मिक अध्यात्म का सर्वोच्च विधान है। वस्तुतः पुण्य कर्म विशेष को कहते हैं। सनातन सभ्यता में पुण्य सदाचार का प्रतीक है। पुण्य, व्यक्ति में उसके आत्मज्ञान, आदर्श, संस्कार, गुण और आलोक की सयुंक्त प्रेरणा है। प्रेरणा बीते शुक्रवार को तब देखने को मिली जब लखनऊ स्थित अलीगंज के अनाथालय में आईएएस राजशेखर, कौशलराज शर्मा, गौरी शंकर प्रियदर्शी और सत्येंद्र सिंह भावविह्ल स्थिति में याद किये गए।

कभी शोषण का पोषण बनकर अनुत्तरित हो चुके 125 वर्षीय इस अनाथालय को शुक्रवार की रात जगमगाते देखा गया। अवसर था, एक संवासिनी का वैवाहिक उत्सव। वे खुश थे, सब खुश थे बच्चे खुश थे, सब साथ थे लेकिन ये सच था बच्चे अनाथ थे। साधना जागी तो चेहरे खुश थे। मर चुके अनाथालय को जीवन मिला, राजशेखर और कौशलराज शर्मा ने जीवन दिया।सबके स्वर थे दोनों के भगीरथ प्रयास थे। क्रम बढ़ा तो प्रयास की गंगा गौरीशंकर प्रियदर्शी और सत्येंद्र सिंह के नाम लिखी गयी। गौरव हुवा, अभिमान चढ़ा और सबके मुक्त स्वर में एक ही भाव था, सभी अधिकारियों के लिए आत्मिक सम्मान। मैं उपस्थित था, यह मेरे लिए सौभाग्यपूर्ण रहा।