Monday , August 25 2025

अब मैने अखबार पढ़ना छोड़ दिया है

 

दम घुटता है मेरा उन खबरों से 

जिसमे गूंजती है चीत्कारे 

एक मासूम बच्ची की 

होता है अफसोस उन दरिंदो पर 

जिन्हे मिलती नही है सजा 

अपने कुकृत्यों की 

अब मैने अखबार पढ़ना छोड़ दिया है

दम घुटता है मेरा उन खबरों से 

जहां उत्पीड़न होता है निर्बल लोगो का 

जीत होती है सबल और ताकतवर लोगो की 

अब मैने अखबार पढ़ना छोड़ दिया है

दम घुटता है मेरा उन खबरों से 

जहां आज की युवा पीढी 

चल रही है पतन की ओर 

संस्कार विहीन समाज का

 निर्माण करते हुए 

अब मैने अखबार पढ़ना छोड़ दिया है

दम घुटता है मेरा उन खबरो से 

जहां बच्चे अपने सुख के लिए

अपने माता पिता को कर रहे है वृद्धाश्रम के सुपुर्द 

छोडकर उनकी आंखो मे बेबसी और नमी

अब मैने अखबार पढ़ना छोड़ दिया है

अखबार दिखाता है आइना आज के सच का 

इस भयावह सच से डर लगता है अब 

कहां जा रहा है समाज केवल हिंसा, अराजकता ,संस्कार विहीन खबरो से ही क्यो भरा पडा है अखबार 

मै तो सिर्फ पढती थी जो खबरे लाकर हम तक पहुंचाते है 

क्या महसूस करते होगे वो 

अब मैने अखबार पढ़ना छोड़ दिया है

(संध्या श्रीवास्तव)