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IIT KANPUR : सतत विकास के लिए जल, जंगल और ज़मीन के संरक्षण पर जोर

कानपुर (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना – 2.0 के तहत शुक्रवार को आईआईटी कानपुर में वाटरशेड विकास कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में जल गुणवत्ता प्रबंधन, जलवायु अनुकूलन और नवीन वाटरशेड दृष्टिकोण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श किया गया।

कार्यशाला का उद्घाटन मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. हीरा लाल (आईएएस) और कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी के डीन प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रो. त्रिपाठी ने सतत कृषि पर चर्चा करते हुए इसे कृषि के लिए एक नई दिशा बताया। डॉ. हीरा लाल ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 2.0 के सभी कर्मियों को जलवायु अनुकूल वाटरशेड रणनीतियों को लागू करने के लिए एक स्पष्ट उद्देश्य स्थापित करने पर जोर दिया।

मुख्य अतिथि डॉ. हीरा लाल ने “दो मां” की अवधारणा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारी पहली मां हमें जन्म देती है, जबकि दूसरी “मां पृथ्वी” जल, जंगल और ज़मीन के रूप में हमें जीवन प्रदान करती है। उन्होंने पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक से जोड़ने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि सस्टेनेबिलिटी के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग (एमएल) के अनुप्रयोग विकसित किए जाने चाहिए, लेकिन साथ ही पर्यावरण को मातृरूप में सम्मान देना भी अनिवार्य है।

कार्यशाला में संयुक्त वाटरशेड प्रबंधन के प्रो. मनोज कुमार तिवारी (आईआईटी कानपुर, सिविल इंजीनियरिंग विभाग) ने जल की गुणवत्ता और उसके महत्व पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि जल जीवन यापन का एक महत्वपूर्ण विषय है और इसकी गुणवत्ता को समझना आवश्यक है। जल का सतत विकास तभी संभव है जब उसका समुचित संरक्षण किया जाए। उन्होंने बताया कि जल के प्रयोग के लिए मानक तय हैं और जल संरक्षण पर आधारित नवाचारों को बढ़ावा देना जरूरी है।

प्रो. देवलिना चटर्जी (प्रबंधन विज्ञान विभाग, आईआईटी कानपुर) ने कार्यशाला में उपस्थित प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 2.0 के सभी कर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि जल संरक्षण की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। आज के समय में ए आई और इंटरनेट ऑफ थिंग्स के माध्यम से स्मार्ट वाटर मैनेजमेंट सिस्टम विकसित किए जा रहे हैं, जिससे कृषि क्षेत्र में जल प्रबंधन को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।

प्रो. महेंद्र कुमार वर्मा (आईआईटी कानपुर) ने चर्चा की कि कृषि की उत्पादकता मौसम पर निर्भर करती है और मानसून जलवायु को प्रभावित करता है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों की भी व्याख्या की।

प्रो. रूपेंद्र ओबेरॉय (दिल्ली विश्वविद्यालय) ने संयुक्त आजीविका पर चर्चा करते हुए बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में सतत विकास के लिए किस प्रकार की नीतियां अपनाई जानी चाहिए। उन्होंने ग्रामीण समुदायों को विकास की ओर अग्रसर करने के विभिन्न उपायों पर भी प्रकाश डाला।

इस कार्यशाला का उद्देश्य “जल गुणवत्ता मैपिंग” और अन्य नवीन तकनीकों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को बढ़ावा देना है। इसमें विभिन्न विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं ने भाग लिया और जल प्रबंधन से जुड़े अपने विचार साझा किए।