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कोर्ट ने खारिज की सफाईकर्मियों के प्रकरण में दाखिल एसएलपी


लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लि. लखनऊ के सफाई कर्मचारियों के नौकरी से निकाले जाने के विवाद में उच्चतम न्यायालय से सेवायोजकों को बड़ा झटका लगा है। उच्चतम न्यायालय ने सेवायोजकों द्वारा दाखिल विशेष अनुमति याचिका को सुनवाई हेतु उपयुक्त न पाते हुए खारिज कर दिया।
हिंद मजदूर सभा के मंत्री अविनाश पांडेय के मुताबिक मेसर्स हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लि0 लखनऊ मण्डल लखनऊ ने अपने कारखाना सफाई, टाउनशिप सफाई के कार्य और कैन्टीन में संविदाकारों के माध्यम से नियोजित कर्मचरियों की सेवायें अनुचित और अवैधानिक ढंग से वर्ष 2000 और 2001 में समाप्त कर दी थी। हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स कर्मचारी सभा (सम्बद्ध-हिन्द मजदूर सभा) ने कर्मचारियों को नौकरी से हटाये जाने को अनुचित और अवैधानिक बताते हुए उन्हें सेवा में बहाल किये जाने और एचएएल का सीधे नियोजित कर्मचारी घोषित करने, सेवा मे नियमित किये जाने की मांग की थी।

उन्होंने विज्ञप्ति जारी कर बताया कि श्रम विभाग में पक्षों के मध्य आई आर वार्ता में कोई समझौता न होने पर उत्तर प्रदेश सरकार ने उक्त सभी प्रकरण को औद्यौगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 10-1 के अन्तर्गत अभिनिर्णय हेतु संदर्भित कर दिया था। कैन्टीन कर्मचारियों का विवाद अभिनिर्णय वाद संख्या 52/3003, फैक्ट्री सफाई कर्मचारियों का विवाद अभिनिर्णय वाद संख्या 126/2002 औद्यौगिक न्यायाधिकरण द्वितीय, लखनऊ और फैक्ट्री सफाई कर्मचारियों का विवाद अभिनिर्णय वाद संख्या 78/3003 माननीय श्रम न्यायालय लखनऊ को सन्दर्भित हुआ।
11 वर्षों तक सुनवाई के बाद औद्यौगिक न्यायाधिकरण द्वितीय लखनऊ ने अभिनिर्णय वाद संख्या 52/2003 में अपना अभिनिर्णय 2011 में देते हुए कैन्टीन के सभी कर्मचारियों को नौकरी में आने की तिथि से ही एचएएल का कर्मचारी माना। उन्हें नौकरी से हटाये जाने को अनुचित और अवैधानिक घोषित करते हुए सेवा में बहाल किये जाने तथा नियमित किये जाने के आदश दिये। सेवायोजको ने उक्त अभिनिर्णय को उच्च न्यायालय लखनऊ में रिट याचिका संख्या 315/2012 द्वारा चुनौती दे रखी है कि एचएएल भारत सरकार का उपक्रम और केन्द्र सरकार द्वारा नियंत्रित उद्योग है। इसलिए न तो उत्तर प्रदेश सरकार उनके औद्यौगिक विवादों को अभिनिर्णय हेतु संदर्भित कर सकती है और न ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित औद्यौगिक न्यायाधिकरण उसकी सुनवाई कर सकते हैं। सेवायोजकों ने इसी आधार पर औद्यौगिक न्यााधिकरण द्वारा पारित अभिनिर्णय को निरस्त किये जाने की प्रार्थना की है, जो कि विचाराधीन है।

उभय पक्षों को सुनने के उपरान्त उच्च न्यायालय ने सेवायोजकों द्वारा प्रस्तुत रिट याचिका संख्या 2796/2003 और 1632/2015 को अपने निर्णय दिनांक 1-4-2024 द्वारा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यद्यपि एचएएल के मामले में सक्षम भारत सरकार है। तथापि भारत सरकार द्वारा औद्यौगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 39 में जारी अधिसूचना के अनुसार प्रदत्त प्राधिकारों के चलते उत्तर प्रदेश सरकार वह सभी कार्यवाही करने में सक्षम थी जो केन्द्र सरकार कर सकती थी। इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी सन्दर्भादेश और उसे औद्यौगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 10(1) के अन्तर्गत संदर्भित किये जाने पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित न्यायाधिकरण को सुनकर अभिनिर्णय देने का भी पूर्ण क्षेत्राधिकार है।
सेवायोजकों ने उक्त निर्णय दिनांक 1-4-2024 को विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी, जिसे आज उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया।
यूनियन की ओर से उच्च न्यायालय लखनऊ में अधिवक्ता ध्रुव माथुर, प्रणव अग्रवाल, रविन्द्र यादव और अविनाश पाण्डेय प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जबकि उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक्सेस लीगल कार्पोरेशन के भागीदार सनन्द रामकृष्णन और राजीव मिश्र ने किया। एचएलएल की ओर से सुनील कुमार गुप्ता ने अपना पक्ष रखा।
हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स कर्मचारी सभा के महामंत्री उमाशंकर मिश्र ने सेवायोजकों की विशेष अनुमति याचिका खारिज होने पर खुशी जताते हुए कहा है कि इससे एचएएल लखनऊ और कोरवा अमेठी के सेवायोजकों द्वारा अनुचित और अवैधानिक ढंग से नौकरी से निकाले गये कैन्टीन और सफाई के सभी कर्मचारियों को न्याय मिलने का रास्ता साफ हो गया है। क्योंकि क्षेत्राधिकार के विन्दु पर ही सेवायोजक इन सभी प्रकरणों को वर्षो वर्षाें तक सुनवाई से बाधित करते आ रहे हैं।