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भारतीय ज्ञान परंपरा सर्वोपरि है : डा. दिनेश शर्मा

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। नेताजी सुभाष चंद्र बोस राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय अलीगंज में शनिवार को “भारतीय ज्ञान परंपरा का पुनरावलोकन : गौरवशाली अतीत से समकालीन संदर्भों तक” विषयक त्रिदिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। बतौर मुख्य अतिथि मौजूद राज्यसभा सदस्य डॉ. दिनेश शर्मा, मुख्य वक्ता राज्यसभा सदस्य डॉ. सुधांशु त्रिवेदी, विशिष्ट अतिथि विधायक डॉ. नीरज बोरा, विशिष्ट वक्ता प्रो. राकेश कुमार मिश्रा (पूर्व विभागाध्यक्ष  राजनीति विज्ञान विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय), प्राचार्य प्रो. अनुराधा तिवारी ने दीप प्रज्वलित कर सम्मेलन का शुभारंभ किया। 

प्राचार्य प्रो. अनुराधा तिवारी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए भारतवर्ष के प्राचीन गौरवपूर्ण ज्ञान परंपरा तथा परतंत्रता के कारण विस्मृत की गई कर दी गई इस प्राचीन गौरवपूर्ण ज्ञान परंपरा का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि प्राचीन भारतीय प्रज्ञा एवं वर्तमान विज्ञान का मिलन ही उत्कृष्टतम बिंदु है। वर्तमान राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा वर्तमान पीढ़ी को समृद्ध ज्ञान परंपरा से  सुसज्जित किया जा रहा है। 

बतौर मुख्य अतिथि मौजूद राज्यसभा सांसद व पूर्व डिप्टी सीएम डा. दिनेश शर्मा ने कहाकि जितनी बार इस महाविद्यालय में आता हूं कुछ नया जरूर दिखता है। ये अटलजी के सपनो का महाविद्यालय है। संगोष्ठी के विषय की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए उन्होंने प्राचीन भारतीय परंपरा की वर्तमान परिदृश्य से तुलना करते हुए बताया कि भारतीय प्राचीन ज्ञान परंपरा सर्वोपरि है। अमेरिका भी भारत के प्राचीन ज्ञान का अनुसरण कर रहा है। मध्यकाल में विस्मृत कर दी गई भारतीय परंपरा के लिए तत्कालीन अंग्रेजी शासन तथा मैकाले की शिक्षा पद्धति को बहुत हद तक जिम्मेदार माना जा सकता है। उन्होंने बताया कि प्राचीन मंदिर न केवल पूजा पाठ के केंद्र थे वरन वे भारतीय अर्थव्यवस्था की नीव थे। 

उन्होंने नारी सम्मान एवं नारी सशक्तिकरण के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए महिलाओं के उत्थान हेतु कार्य करने की दिशा पर बल दिया। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में भी नारी का बहुत सम्मान हुआ करता था तथा विभिन्न प्रकार की विदुषी महिलाओं का जिक्र प्राचीन धर्म ग्रंथो में है। बदला हुआ भारत प्राचीन परंपराओं का अनुसरण करते हुए विश्व में सिरमौर होने की दिशा में अग्रसर है। 

संगोष्ठी के मुख्य वक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने भारतीय ज्ञान परंपरा की श्रेष्ठता का उल्लेख करते हुए बताया कि वर्तमान पीढ़ी को भारतीय प्राचीन, ज्ञान परंपरा से अवगत कराना बहुत आवश्यक है। उन्होंने प्राचीन काल में महिलाओं के अधिकारों का उल्लेख करते हुए वेदों में भारतीय विदुषियों के द्वारा धर्म शास्त्रार्थ एवं स्त्रियों द्वारा शास्त्रार्थ के निर्णायक की भूमिका के बारे में बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा अमृत काल में भारत को सशक्तिकरण की ओर ले जाने के लिए पंच प्रण की आवश्यकता पर बल दिया। भारतीय ज्ञान परंपरा के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए उन्होंने कोणार्क के सूर्य मंदिर में सूर्य के प्रकाश को एक बिंदु पर केंद्रित करने की वैज्ञानिकता और वर्तमान में अयोध्या में स्थापित किए गए राम मंदिर पर वर्तमान के आधुनिक यंत्रों द्वारा सूर्य के प्रकाश को एक बिंदु पर केंद्रित करने की तुलना करते हुए बताया कि हमारा भारतीय विज्ञान बहुत गौरवशाली रहा है। जिसको विदेशियों द्वारा अपना कर वर्तमान वैज्ञानिक तथ्य प्रतिपादित किए गए। उन्होंने भारतीय जनमानस की मंत्रों के द्वारा दीक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। 

प्रमुख वक्ता प्रो. डॉ. राकेश मिश्रा ने भारत की प्राचीन वैज्ञानिक दृष्टि एवं आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि की समानता पर अपने विचार रखें। उन्होंने बताया कि आत्मज्ञान ही परम तत्व है, जो व्यष्टि में है वही समष्टि में है। भारतीय ज्ञान परंपरा मोक्ष मूलक है। मोक्ष को उन्होंने साध्य जबकि धर्म को साधन बताया।

कार्यक्रम अध्यक्ष विधायक डा. डॉ. नीरज बोरा ने नारी सशक्तिकरण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि बेटियां ही अमृत काल की एंबेसडर हैं। इस त्रिदिवसीय संगोष्ठी के संयोजक डॉ. राजीव यादव ने संगोष्ठी की परिकल्पना प्रस्तुत की। इस अवसर पर डॉ. भास्कर शर्मा ने कविता के माध्यम से मुख्य अतिथि व मुख्य वक्ता का अभिनंदन किया। डॉ. पूनम वर्मा ने सभी अतिथियों का आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. शालिनी श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम में देश विदेश से आए हुए अतिथियों, शिक्षाविदों तथा महाविद्यालय के समस्त प्राध्यापकों, कर्मचारियों एवं छात्राओं ने बड़े हर्ष और  उल्लास के साथ प्रतिभाग किया।

इस अवसर उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त दिलीप अग्निहोत्री, शिक्षक नेता डा. मनोज पांडे, नवयुग कालेज की प्राचार्य प्रोफेसर मंजुला उपाध्याय, प्रो. यूके सिंह, प्रो. वीना राय, प्रो. सारिका दुबे, महामाया कालेज की प्राचार्य शहला नुसरत किदवई, डा. सीमा सिंह, डा. दीप्ति खरे, डा. बृजेंद्र पांडे, डा. भारती सिंह सहित बड़ी संख्या में शिक्षक तथा गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।