मजदूर भी हूं मजबूर भी हूं
पर हां मै मजबूत भी हूं
क्यो कि मै महिला मजदूर हूं
सर पर ईंटो का ढेर
पीठ पर लादे दुधमुहां बच्चा
अधरो पर मुस्कान लिए
दिन भर मजदूरी करती हूं
दो सूखी रोटी खाकर भी
खुद को खुश रखती हूं
किस्मत का ताना बाना ऐसा
आज यहां कल वहां गुजर करती हूं
अपना भी घर होगा कभी
ये सिर्फ सपनो मे सोचा करती हूं
एक एक पाई जोड़कर
आंचल मे खोंसा करती हूं
बच्चो के खुशहाल भविष्य के
सपने बुना करती हूं
टूट जाते है सपने एक पल मे
जब लुट जाती है कमाई
अपने ही जीवन साथी से
अपने नशे की लत मे वो
दे जाता है अनगिनत घाव
तन और मन दोनो को
हर रात बिखरती हूं टूट कर
सुबह फिर चल देती हूं
पूरे करने सपनो को अपने
अधरों पर मुस्कान लिए
मन मे विश्वास लिए
हां मै महिला मजदूर हूं
