आईआईटी कानपुर और एनएसआई कानपुर के बीच हुआ MOU

  • इस सहयोगात्मक शोध कार्य का फोकस क्षेत्र ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत बायोमास से इथेनॉल, मेथनॉल, बायो-सीएनजी, विमानन ईंधन और ग्रीन हाइड्रोजन आदि के उत्पादन को बढ़ाने पर अध्ययन करेगा

इस साझेदारी का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देते हुए भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए दोनों संस्थानों की विशेषज्ञता का लाभ उठाना है।1

कानपुर (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर (IITK) और राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर (NSI कानपुर) ने 15 जून को NSI कानपुर में जैव ईंधन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भारत सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के संयुक्त सचिव (शर्करा) अश्विनी श्रीवास्तव, आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मनिंद्र अग्रवाल और राष्ट्रीय शर्करा संस्थान, कानपुर की निदेशक डॉ. सीमा परोहा की उपस्थिति में हुए।

इस समझौता ज्ञापन के तहत, आईआईटी कानपुर और एनएसआई कानपुर अत्याधुनिक अनुसंधान करने और देश में बेहतर दक्षता और स्थिरता के साथ जैव ईंधन उत्पादन को बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक तकनीक विकसित करने और अपनाने के लिए संयुक्त परियोजनाओं में काम करेंगे। इसके द्वारा जैव ईंधन से जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है। इस सहयोगात्मक शोध कार्य का फोकस क्षेत्र बायोमास, ऊर्जा के एक नवीकरणीय स्रोत से इथेनॉल, मेथनॉल, बायो-सीएनजी, एविएशन फ्यूल और ग्रीन हाइड्रोजन आदि के उत्पादन को बढ़ाने पर अध्ययन करेगा।

उत्तर प्रदेश एक कृषि-आधारित राज्य है और गन्ना उत्पादन में शीर्ष स्थान पर है, इसलिए यह जैव ईंधन अनुसंधान के लिए एक आदर्श स्थान होगा। इस साझेदारी का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देते हुए भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए दोनों संस्थानों की विशेषज्ञता का लाभ उठाना है।

प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल (निदेशक, आईआईटी कानपुर) ने इस मौके पर कहा कि, “एनएसआई कानपुर 60 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रहा है, बाजार की गतिशीलता और तकनीकी आवश्यकताओं को अच्छी तरह समझता है। समानांतर रूप से, आईआईटी कानपुर के पास रासायनिक और अन्य संबंधित क्षेत्रों में मौलिक विज्ञान और प्रौद्योगिकियों की समझ है। इसका उद्देश्य दोनों संस्थानों की शक्तियों को मिलाकर एक अत्याधुनिक केंद्र बनाना है, जो भारत को जैव ईंधन के क्षेत्र में नेतृत्व की स्थिति लेने में मदद करेगा।”

अश्विनी श्रीवास्तव (संयुक्त सचिव (शर्करा), भारत सरकार) ने दोनों प्रतिष्ठित संस्थानों के बीच संयुक्त शोध कार्य के लिए अपनी शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि “राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति, 2018 विभिन्न गन्ना-आधारित फीडस्टॉक से इथेनॉल के उत्पादन के साथ-साथ इथेनॉल के उत्पादन के लिए अधिशेष खाद्यान्न के उपयोग की अनुमति देती है। पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रण (ईबीपी) कार्यक्रम के तहत, सरकार ने 2025 तक पेट्रोल के साथ इथेनॉल के 20% मिश्रण का लक्ष्य तय किया है। देश में इथेनॉल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए, सरकार इथेनॉल के उत्पादन के लिए मक्का को एक प्रमुख फीडस्टॉक के रूप में बढ़ावा दे रही है। यह गन्ने के अन्य उप-उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देकर अपशिष्ट से धन के दृष्टिकोण पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है।”

डॉ. सीमा परोहा (निदेशक, एनएसआई कानपुर) ने कहा, “यह एक दीर्घकालिक समझौता ज्ञापन है। संस्थान परिसर में सीओई के लिए सभी आवश्यक उपकरणों, पायलट प्लांट और उपकरणों सहित अत्याधुनिक प्रयोगशाला के साथ एक समर्पित भवन स्थापित किया जाएगा। इसे शुरू में मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा, और आगे चलकर, औद्योगिक गठजोड़ को भी लक्षित किया जाएगा।”

यह समझौता ज्ञापन नवीन प्रौद्योगिकियों के विकास, मौजूदा प्रक्रियाओं के अनुकूलन और जैव ईंधन प्रौद्योगिकी व्यवहार्यता को प्रदर्शित करने के लिए पायलट परियोजनाओं की स्थापना के माध्यम से उन्नत टिकाऊ उच्च गुणवत्ता वाले जैव ईंधन के उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में एक कदम है। यह अंततः ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा, CO2 उत्सर्जन को कम करके जलवायु की रक्षा और जीवाश्म ईंधन/कच्चे तेलों के आयात पर निर्भरता को कम करने में योगदान देगा।

इस अवसर पर आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर राजीव जिंदल और प्रोफेसर देबोपम दास के साथ-साथ एनएसआई कानपुर के विनय कुमार, अनूप कुमार कनौजिया और डॉ. आर. अनंतलक्ष्मी भी उपस्थित थे।

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