Saturday , July 27 2024

व्यावसायिक शैक्षिक विकास के लिए जीवन पर्यंत सीखने की आवश्यकता – स्वामी मुक्तिनाथानन्द

36वाँ वार्षिक सतत् चिकित्सा शिक्षा सम्मेलन सम्पन्न

लखनऊ। विवेकानन्द पाॅलीक्लिनिक एवं आयुर्विज्ञान संस्थान ने अपने 54वें वर्षगांठ के अवसर पर शुक्रवार को 36वाँ वार्षिक सतत् चिकित्सा शिक्षा सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें लगभग 150 से ज्यादा वरिष्ठ चिकित्सक एवं चिकित्सा के परास्तानक छात्रों नें भाग लिया। यह सतत् चिकित्सा शिक्षा विशेषतः भारत जैसे देशों में काडिर्योथोरेसिस सर्जरी की वर्तमान संभावनाए के साथ ही साथ चिकित्सा क्षेत्र से जुडे अन्य विभिन्न पहलुओं पर आयोजित की गयी। जिसमें तीन सत्र आयोजित किये गये थे। 

कार्यक्रम की शुरूआत द्वीप प्रज्जवलन व प्रशिक्षु उपचारिकाओं के वैदिक मन्त्रोंच्चारण से हुआ। संस्थान के प्रमुख स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज ने कार्यक्रम में आए हुए सभी प्रतिभागियों व मेहमानों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि हमें सतत् ज्ञान का विकास व चिकित्सा क्षेत्र में हो रही नवीनतम उन्नति की जानकारी की आवश्यकता है। व्यवसायिक शैक्षिक विकास के लिए जीवन पर्यंत सीखने की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि रोगियों की अधिक देखभाल और समर्पण के साथ सेवा निरंतर विस्तार से संवर्धित किया जाना चाहिए। स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने चिकित्सा शिक्षा के महत्व और कैसे मरीजों को गुणवत्तायुक्त चिकित्सा सेवा प्राप्त हो सके विषय पर चर्चा करते हुये डॉक्टरों को संबोधित भी किया।

बतौर मुख्य अतिथि मौजूद डॉ. देविका नाग (सेवानिवृत, प्रोफेसर एवं प्रमुख, न्यूरोलॉजी विभाग, केजीएमयू) ने अपने संबोधन में समाज के निचले स्तर के लोगो के उन्नयन में स्वामी विवेकानन्द द्वारा किये गये कार्यों एवं प्रयासों पर चर्चा की। उन्होंने कहाकि आज के परिदृश्य में स्वामी जी की शिक्षा ज्यादा प्रासंगिक है। 

इसके बाद 6 वरिष्ठ विशेषज्ञों की अध्यक्षता में 3 सत्रों में वैज्ञानिक प्रस्तुतियों पर श्रृंखला पेश की गई। जिसमें  एसजीपीजीआईएमएस, केजीएमयू, आरजी कर मेडिकल काॅलेज, कोलकाता और सिनसिनाटी विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं वीपीआईएमएस, लखनऊ के प्रख्यात चिकित्सा सलाहकारों द्वारा व्याख्यान दिए गए। 

प्रो. डा. यूके मिश्रा ने ‘स्पाइनल ट्यूबरकुलोसिस लेशन लनेर्ट’ विषय पर इस खतरनाक बीमारी के साथ अपने अनुभव का वर्णन किया जो कि स्पाइनल ट्यूबरकुलोसिस है जो इसके प्रबंधन को बदल रहा है। डॉ. जयंती कलिता ने ‘मेडिकल मैनेजमेंट ऑफ इंट्रासेरेब्रल हेमरेज’ के बारे में बात की। उन्होंने एमआरआई के संकेतों और निष्कर्षों की व्याख्या बेहतर प्रबंधन के साथ-साथ तीव्र सेटिंग्स में क्या करें और क्या न करें के बारे में बताया।

प्रो. (डॉ.) नकुल सिन्हा ने ‘हार्ट फेल्योरः मिथ्स एंड रियलिटीज’ पर एक वार्ता प्रस्तुत की। डॉ. सिन्हा ने यहां अन्य चिकित्सा स्थिति से हृदय की विफलता की पहचान करने व बेहतर परिणाम के लिए हृदय रोगियों की जीवन शैली कैसे बदलें पर बताया।

प्रो. (डॉ.) आर.सी. आहूजा ने क्रिटिकल अप्रेजल ऑफ पब्लिस्ड लिटलेचर’ पर व्याख्यान दिया। उन्होंने चिकित्सा शोध पत्र लेखन के प्रकार और पद्धति और चिकित्सा पद्धति में इसके उपयोग का वर्णन किया।

प्रोफेसर (डॉ.) भाबातोष विश्वास ने ‘स्पेक्ट्रम ऑफ थोरैसिक सजर्री इन इण्डिया’ पर भारत जैसे विकासशील देशों में कार्डियो थोरैसिक सर्जरी की वर्तमान और भविष्य की संभावनाओं के बारे में चर्चा की। उन्होंने फेफड़े की श्वासनली और संबंधित संरचना के प्रबंधन विकार में न्यूनतम पहुंच और रोबोटिक सर्जरी के उपयोग पर जोर दिया।

डॉ. मदन रजत ने एक लाइव सत्र के माध्यम से ‘इम्पेरिकल एंटीबायोटिक च्वाइस फाॅर हास्पिटलाइज्ड एडल्ट’ विषय पर अपने विचार व्यक्त किये तथा विभिन्न प्रकार के संक्रमणों में एंटीबायोटिक दवाओं के आईसीयू और वार्ड में विवेकपूर्ण और सुरक्षित उपयोग के दिशा-निर्देश देते हुये सीएमई में उपस्थित डाक्टरों को सम्बोधित किया। 

इसके बाद डीएनबी छात्रों और डॉ. भबातोष बिस्वास के बीच डीएनबी पाठ्यक्रम, इसकी हालिया प्रगति और डीएनबी परीक्षाओं के दृष्टिकोण के बारे में जीवंत परिचर्चा हुई। वक्ताओं के प्रत्येक प्रस्तुति के बाद जीवंत चर्चा और बुद्धिजीवी छात्रों द्वारा उठाये गये प्रत्येक प्रश्नों पर परिचर्चा हुई। कार्यक्रम मे अन्त में विवेकानन्द पाॅलीक्लीनिक एवं आयुर्विज्ञान संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक डा. देबाशीष शाहा नेे सधन्यवाद दिया।