लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, भारतीय भाषा मंच एवं महर्षि विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी भाषा के प्रोत्साहन हेतु अवध प्रांत द्वारा हिंदी पखवाड़ा उत्सव के अंतर्गत राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सम्मलेन एवं सम्मान समारोह का आयोजन महर्षि विश्वविद्यालय में किया गया। जिसमें बतौर मुख्य अतिथि गिरीश चन्द्र मिश्र (उपाध्यक्ष राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश), विशिष्ट अतिथि भारतीय भाषा प्रतिष्ठापन राष्ट्रीय परिषद् के अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी, पद्मश्री डॉ. विद्या विंदु सिंह और भारत सरकार गृह मंत्रालय के अंतर्गत संचालित राष्ट्र रक्षा विश्व विद्यालय लखनऊ की निदेशिका मंजरी चंद्रा मौजूद थी।
अध्यक्षता शिक्षा संस्कृति न्यास के राष्ट्रीय सह संयोजक संजय स्वामी, संचालन अवध प्रांत के प्रचार प्रसार संयोजक दीप नारायण पांडेय, धन्यवाद् ज्ञापन महर्षि विश्व विद्यालय के कुलपति प्रो. भानु प्रताप सिंह ने और स्वागत उद्बोधन एवं न्यास का परिचय प्रांत संयोजक प्रमिल द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ दीप प्रज्वलन से हुआ।
आज की चर्चा में भारत में संपर्क भाषा और विश्व भाषा के रूप में हिंदी की संभावनाएं और चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास में भाषा का योगदान विषय पर विद्वानों ने अपने अपने विचार रखे। इस अवसर पर हिंदी साहित्य जगत की 18 वरेण्य विभूतियों को सम्मानित किया गया।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के प्रांत संयोजक प्रमिल द्विवेदी ने कहाकि भाषा विश्वम योजयति अर्थात भाषा विश्व को जोड़ने का काम करती है। आज हमारी हिंदी भाषा भी संचार का माध्यम बनकर देश दुनिया की संस्कृतियों और लोगों को जोड़ रही है। अपने दैनिक व्यवहार, व्यवसाय आदि में यथा संभव अपनी मातृभाषा का प्रयोग करें। अपने हस्ताक्षर अपनी भाषा में करें, घर, कार्यालय की नाम पट्टिका अपनी भाषा में रखें, दिन महीनों के नाम हिंदी में या अपनी मातृभाषा ही बोलें अपनी भाषा के समाचार पत्र प्रमुखता से पढ़ें। ऐसे छोटे छोटे प्रयासों से हम अपनी भाषा को प्रोत्साहित करने में अपना योगदान दे सकते हैं।
हिंदी साहित्य जगत की सम्मानित होने वाली वरेण्य विभूतियों में पद्मश्री डॉ. विद्या बिंदु सिंह, महेश चंद्र द्विवेदी (आईपीएस), अलका प्रमोद, डॉ. चंद्र मोहन नौटियाल, वीरेंद्र सक्सेना, महेंद्र भीष्म, पद्माकांत शर्मा प्रभात, डॉ. राम कठिन सिंह, डॉ. गंगा प्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’, प्रो. दया दीक्षित, डॉ. मानसी द्विवेदी, कवि रामायण धर द्विवेदी, डॉ. बलजीत श्रीवास्तव, डॉ. शिवमंगल सिंह मंगल, विजय त्रिपाठी, गौरव मिश्रा और पवनपुत्र बादल सम्मिलित थे।

मुख्य अतिथि ने अपने उद्बोधन में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास अवध प्रांत द्वारा अपनी मातृभाषा विशेषकर हिंदी भाषा के प्रोत्साहन हेतु किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि भाषाई समन्वय विकसित भारत बनाने के लिए बहुत आवश्यक है। वैश्विक पटल पर हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है, चरित्र निर्माण में भाषा का योगदान बहु आयामी है।

पद्मश्री डॉ. विद्या विन्दु सिंह ने कहा कि अवधी हिंदी भाषा को समृद्ध करती है। अवधी लोकसाहित्य को जनमानस में सहजता से पहुँचाने से लोकसंस्कृति और हिंदी भाषा को प्रोत्साहन मिलता है। लेखन, लोकगीत, साहित्य सृजन द्वारा हिंदी को गति मिलती है।
भारतीय भाषा प्रतिष्ठापन राष्ट्रीय परिषद् के अध्यक्ष महेश चंद्र द्विवेदी ने अंतर्राष्ट्रीय जगत में हिंदी का वर्तमान और भविष्य पर बात करते हुए कहा कि संसार में हिंदी बोलने वालों की संख्या चीनी भाषा के उपरांत द्वितीय क्रम पर आंकी गयी है। किसी भाषा के साहित्य का बहु आयामी होना एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी स्वीकार्यता उस भाषा को प्रतिष्ठित करते हैं। हिदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में राष्ट्र भाषा प्रचार समिति वर्धा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। साहित्य, संस्कृति और सद्भाव की भाषा हिंदी को ज्ञान विज्ञान, व्यापार उद्योग तथा प्रौद्योगिकी की भाषा बनाना चाहिए। जिससे हिंदी किसी अनुसंसा से नहीं अपितु अपनी शक्ति से संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन सके।
राष्ट्र रक्षा विश्व विद्यालय लखनऊ की निदेशिका मंजरी चंद्रा ने कहा कि यदि हम भारतीय भाषाओँ का सम्मान नहीं करेंगे तो देश की अखंडता, विकास और विकसित भारत का संकल्प पूर्ण होने में कठिनाई होगी। भारतीय भाषाएँ हमें जोड़ती हैं, संपर्क भाषा के रूप में हिंदी के प्रोत्साहन हेतु किये जा रहे प्रयास सराहनीय हैं।

इसके अतिरिक्त अलका प्रमोद, पद्मकांत शर्मा सहित अन्य साहित्यकारों ने हिंदी भाषा के प्रोत्साहन के लिए राष्ट्र और वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के लिए उपायों पर अपने अपने विचार रखे।
दिल्ली से पधारे न्यास के राष्ट्रीय सह संयोजक संजय स्वामी ने अपने उद्बोधन में भारत में संपर्क भाषा और विश्व भाषा के रूप में हिंदी की संभावनाएं और चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास में भाषा का योगदान विषय पर अपने विचार रखा। उन्होंने आह्वान किया कि मां, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं होता। अतः हम सबको मिलकर राष्ट्र हित में इन प्रयासों को आगे बढ़ाना होगा, अपनी भाषा में अध्ययन- अध्यापन करने से चिंतन में मौलिकता और सृजनात्मकता आती है।
कार्यक्रम में विशेषरूप से अवध प्रांत के कार्यकर्ता गण प्रो. कीर्ति नारायण, प्रो. शीला मिश्रा, प्रो. सुषमा मिश्रा, केबी पन्त, एके पाण्डेय, एके श्रीवास्तव, चैतन्य अग्रवाल, शाश्वत शुक्ल, सुगम दुबे सहित अनेक शिक्षाविद, वैज्ञानिक, प्रोफेसर्स, डॉक्टर्स, चिन्तक, लेखक, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, बैंकर्स तथा मनीषा जगत से अनेक गणमान्य लोग शामिल थे।