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ख़तरे की घंटी : भारत में हर चार में से एक व्यक्ति रूमेटिक मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर से प्रभावित

  • “अपडेट – 2025” में रूमेटिक बीमारियों के घातक प्रभावों और भारत में इसके कारण उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य संकट पर चर्चा

नई दिल्ली (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। भारत में रूमेटोलॉजिकल बीमारियाँ तेजी से गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही हैं, जो लगभग 25% आबादी को प्रभावित कर रही हैं। ये रोग मुख्य रूप से इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी के कारण होते हैं, जिससे शरीर में सूजन, लगातार दर्द और कई अंगों को दीर्घकालिक नुकसान हो सकता है। इन बीमारियों का निदान और उपचार काफी जटिल होता है। यदि सही समय पर इलाज न मिले तो विकलांगता या कुछ मामलों में जानलेवा स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।

इन बीमारियों के सटीक निदान और प्रभावी उपचार की आवश्यकता को समझते हुए, दिल्ली रूमेटोलॉजी एसोसिएशन ने हाल ही में अपडेट 2025 का आयोजन किया। फोर्टिस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स द्वारा आयोजित इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में देशभर से 220 से अधिक डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य रूमेटिक बीमारियों के निदान में आने वाली कमियों को दूर करना और नवीनतम उपचार रणनीतियों पर चर्चा करना था।
कार्यक्रम में फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा के रूमेटोलॉजी डायरेक्टर, डॉ. बिमलेश धर पांडे ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने ऑटोइम्यून बीमारियों की जटिलताओं पर विस्तृत जानकारी साझा की और इनके समग्र उपचार की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि रूमेटॉयड आर्थराइटिस, ल्यूपस और सोरियाटिक आर्थराइटिस जैसी बीमारियाँ प्रजनन आयु की महिलाओं को अधिक प्रभावित कर रही हैं।

डॉ. बीडी पांडे के अनुसार, “ऑटोइम्यून बीमारियाँ अक्सर लगातार बुखार, अनियंत्रित वजन घटने और जोड़ों में दर्द के रूप में प्रकट होती हैं, लेकिन कई बार इन्हें अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के रूप में नजरअंदाज कर दिया जाता है।” उन्होंने यह भी बताया कि सोरायसिस को आमतौर पर केवल त्वचा रोग माना जाता है, जबकि यह सोरियाटिक आर्थराइटिस का संकेत भी हो सकता है, जो जोड़ों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

उन्होंने ऑटोइम्यून बीमारियों की जल्द पहचान पर जोर देते हुए कहा, “रूमेटिक बीमारियों का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन वैज्ञानिक पद्धति से इनका प्रभावी प्रबंधन किया जा सकता है। इससे मरीजों को लंबे समय तक राहत मिल सकती है।” उन्होंने डॉक्टरों से आग्रह किया कि वे मरीजों को जागरूक करें कि नियमित दवा और डॉक्टर की सलाह का पालन करना बेहद जरूरी है ताकि बीमारी के गंभीर प्रभावों को रोका जा सके।

कार्यक्रम में पीडियाट्रिक रूमेटोलॉजी (बच्चों में होने वाली रूमेटिक बीमारियाँ) के बढ़ते मामलों पर भी चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने बताया कि बच्चों में ऑटोइम्यून बीमारियाँ लंबे समय तक बनी रहने वाली समस्याएँ पैदा कर सकती हैं, जैसे कि लगातार संक्रमण, हृदय रोग, किडनी डैमेज और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल जटिलताएँ।

डॉ. बीडी पांडे ने शहरी क्षेत्रों में बढ़ते प्रदूषण और आनुवंशिक कारकों को भी रूमेटिक बीमारियों के प्रमुख कारणों में शामिल किया। उन्होंने बताया कि चिकनगुनिया जैसी कुछ वायरल संक्रमणों के बाद कई मरीजों में आर्थराइटिस विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। उन्होंने इस विषय पर जागरूकता फैलाने और रूमेटिक रोगों की रोकथाम व प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति बनाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।

विशेषज्ञों ने इस बात पर भी चिंता जताई कि मरीजों का निदान और इलाज अक्सर देर से शुरू होता है। कई मरीज पहले आयुर्वेद, होम्योपैथी और अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की ओर रुख कर लेते हैं, जिससे सही इलाज में देरी होती है। जब तक वे विशेषज्ञ डॉक्टरों तक पहुँचते हैं, तब तक बीमारी गंभीर रूप ले चुकी होती है और कई मामलों में स्थायी विकृति (डिफॉर्मिटी) तक हो सकती है। डॉ. पांडे ने इस समस्या के समाधान के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे मरीजों को सही समय पर विशेषज्ञ उपचार मिल सके और एक सशक्त रेफरल सिस्टम विकसित किया जा सके।

कार्यक्रम का समापन इस संकल्प के साथ हुआ कि देशभर में रूमेटोलॉजिकल देखभाल को बेहतर बनाया जाएगा। इसमें जागरूकता बढ़ाने, जल्दी पहचान करने और समय पर उपचार सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया। डॉ. बी. डी. पांडे ने स्पष्ट किया कि ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज में एक बहु-विषयक (मल्टी-डिसिप्लिनरी) दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें रूमेटोलॉजिस्ट, जनरल फिजीशियन और पीडियाट्रिशन मिलकर मरीजों की भलाई के लिए काम करें।

दिल्ली रूमेटोलॉजी एसोसिएशन – अपडेट 2025 ने मेडिकल प्रोफेशनल्स को एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया, जहाँ वे रूमेटोलॉजी क्षेत्र में नवीनतम प्रगति से अवगत हो सके। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य था बेहतर मरीज देखभाल, निदान में आने वाली चुनौतियों को दूर करना और भारत में ऑटोइम्यून बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम सुनिश्चित करना।