फाइलेरिया से बचाव की दवा खुद खाने और सभी को खिलाने का लिया प्रण
फाइलेरिया नेटवर्क के सदस्यों से मिली बीएमजीएफ की टीम
सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम में किये जा रहे प्रयासों के बारे में जाना
नेटवर्क से जुड़ने के बाद आये बदलाव को साझा किया सदस्यों ने
लखनऊ। बिल एंड मिलेंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) की टीम ने मंगलवार को बक्शी का तालाब और मोहनलालगंज ब्लाक के फाइलेरिया रोगी नेटवर्क के सदस्यों से मिलकर उनका हालचाल जाना। राजधानी में 10 फरवरी से शुरू हो रहे सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम (आईडीए राउंड) में नेटवर्क सदस्यों द्वारा की जा रही मदद के बारे में बात की। टीम ने फाइलेरिया रोगियों से बातचीत कर यह भी जानने की कोशिश की कि नेटवर्क से जुड़ने के बाद जीवन में किस तरह का बदलाव महसूस कर रहे हैं। इस मौके पर रुग्णता प्रबन्धन एवं दिव्यांगता निवारण (एमएमडीपी) किट का उपयोग और व्यायाम के फायदे के बारे में सदस्यों ने बताया। बीएमजीएफ टीम में शामिल नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजीज (एनटीडी) के लीड डॉ. भूपेन्द्र त्रिपाठी ने नेटवर्क सदस्यों के प्रयासों को सराहा।
बक्शी का तालाब ब्लाक के फाइलेरिया रोगी नेटवर्क के सदस्य लालता प्रसाद ने बताया कि वह कई साल से फाइलेरिया से ग्रसित रहे हैं। उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी कि कभी इससे राहत मिलेगी। बहुत इलाज कराया लेकिन कोई आराम नहीं मिला। चलना-फिरना तक दूभर हो गया था। साल भर पहले फ़ाइलेरिया नेटवर्क के संपर्क में आया और सरकारी स्वास्थ्य सुविधा से जुड़कर प्रभावित अंगों की सही तरीके से साफ-सफाई और व्यायाम के बारे में जाना। इसे अपनाने से सूजन में कमी आयी और जीवन भी कुछ सरल हो गया। महीनों से कोई तीव्र आघात भी नहीं आया है। अब दूसरों को भी जागरूक करने में जुटे हैं। लोगों को बताते हैं कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, इसलिए समझदारी इसी में है कि बचाव की दवा का सेवन जरूर करें। राशन कोटेदार से मिलकर यह बताएँगे कि जो फाइलेरिया से बचाव की दवा न खाए, उसे राशन न दें। फाइलेरिया रोगी नेटवर्क की सदस्य बिट्टो देवी की यही कोशिश है कि 10 फरवरी को शुरू हो रहे सर्वजन दवा सेवन कार्यक्रम में ज्यादा से ज्यादा लोग दवा का सेवन करें और फाइलेरिया से सुरक्षित बनें। 60 वर्षीया सैदुनिशा ने कहा कि उनका यही प्रयास है कि दवा खाने से कोई भी छूटने न पाए ताकि हम अगली पीढ़ी को सुरक्षित बना सकें।
फाइलेरिया रोगी ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि किस तरह से एयरफ़ोर्स में भर्ती की लिखित परीक्षा पास करने के बाद मेडिकल में फेल हो गए क्योंकि उन्हें फाइलेरिया थी, जिसकी उन्हें जानकारी ही नहीं थी। इसी तरह एक ने बताया कि फाइलेरिया के चलते उसकी स्कूल के रसोइया की नौकरी छूट गयी। फाइलेरिया रोगी नेटवर्क की सदस्य मालती, शालिनी, अजय, मुरली, रमेश गौतम आदि ने भी अपने अनुभव साझा किये। बीएमजीएफ की टीम में शामिल डॉ. केटी ने कहा कि हम लर्निंग विजिट पर आये हैं, फाइलेरिया रोगियों के अनुभवों के बारे में जाना। उनके प्रयास सफल हों, यही उनके लिए शुभकामनाएं हैं। इस दौरान डब्ल्यूएचओ, पीसीआई और सीफार की टीम भी इस मौके पर उपस्थित रही।