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छोटे शहर की प्रतिभाशाली युवती का मजबूत संकल्प और अनुशासन से सिविल सेवा तक का सफ़र

लखनऊ (टेलीस्कोप टुडे संवाददाता)। कासी सुहिता अनुपम की भारतीय सिविल सेवाओं तक की यात्रा मजबूत संकल्प, शांत सहनशीलता और वर्षों के अनुशासित प्रयास की कहानी है। आज जब वह सार्वजनिक सेवा के सबसे सम्मानित पदों में से एक पर पहुंची हैं, उनकी यात्रा छोटे शहरों के उन युवा उम्मीदवारों के लिए एक शक्तिशाली प्रेरणा बन गई है जो बड़े सपने देखने का साहस रखते हैं।

आंध्र प्रदेश के गुंटूर में जन्मी और पली-बढ़ी सुहिता ने स्कूल के दिनों में ही सिविल सेवाओं में जाने का लक्ष्य तय कर लिया था। उन्होंने कहा, “मैंने एक बार अपने स्कूल में जिला कलेक्टर (डीएम) की गाड़ी को ऊपर लगी बत्ती के साथ देखा था और वही दृश्य मुझे प्रेरित कर गया था।”

सुहिता ने कहा, “मेरी मां ने भी सिविल सेवा में जाने का सपना देखा था, लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिला। इसलिए मैंने उनका सपना पूरा करने के लिए सिविल सेवा में किसी भी तरह सफलता पाने का निश्चय किया।”

सुहिता ने अपने सपने की ओर बढ़ने की नींव शैक्षणिक उत्कृष्टता से रखी। लूथरन इंग्लिश मीडियम स्कूल की छात्रा रहते हुए वह हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती रहीं और 10वीं कक्षा में उन्होंने टॉप किया। इसके बाद आंध्र प्रिस्टीन कॉलेज में इंटरमीडिएट शिक्षा के दौरान उन्होंने अंग्रेजी विषय में सर्वोच्च अंक प्राप्त किए और इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया।

अपने शैक्षणिक रिकॉर्ड के चलते सुहिता के लिए गीतम विश्वविद्यालय (GITAM University) में प्रवेश स्वाभाविक था। उन्होंने अपनी यूपीएससी सफलता का श्रेय इस विश्वविद्यालय को दिया।

उन्होंने कहा, “सिविल सेवा की तैयारी के लिए समय निकालना एक चुनौती था क्योंकि मैं साथ-साथ गीतम में सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी कर रही थी। लेकिन संस्थान की क्लास प्लानिंग में जो अनुशासन था, उसने मेरी बहुत मदद की। कोई भी क्लास कैंसिल नहीं होती थी और पूरा शेड्यूल सख्ती से पालन किया जाता था। इससे मुझे पढ़ाई के लिए समय प्रबंधन करने में सहायता मिली। साथ ही, गीतम विश्वविद्यालय ने मुझे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विश्लेषणात्मक और तार्किक अध्ययन करना सिखाया, जिससे मेरा आत्मविश्वास और मजबूत हुआ।”

सिविल सेवा की नौकरी भारत में सबसे प्रतिष्ठित मानी जाती है और इसके लिए परीक्षा पास करना भी सबसे कठिन कार्यों में से एक है। हर साल लगभग दस लाख छात्र यह परीक्षा देते हैं, लेकिन उनमें से केवल लगभग 0.2 प्रतिशत ही सफल हो पाते हैं।

यह उपलब्धि सुहिता को एक अत्यंत विशिष्ट वर्ग में शामिल करती है। उनके नक्शे कदम पर चलने की इच्छा रखने वालों के लिए सुहिता की सलाह है।

“मैं व्यक्तिगत रूप से मानती हूं कि आपको अपने लक्ष्य के प्रति बहुत केंद्रित होना चाहिए और किसी भी तरह के भटकाव से बचना चाहिए। यह कोई छोटा सफर नहीं है, इसके लिए कम से कम चार से पांच साल की योजना होनी चाहिए। दबाव तो रहेगा ही, लेकिन आपको अपने विषयों से लगातार जुड़े रहना होगा। खुद को अपनी प्रतिस्पर्धा समझें, दूसरों से तुलना न करें।”