सिन्दूर मांग का मिटा दिया
बेटी को विधवा बना दिया
यह देख धधक कर जल उठा
हर नेत्र फफककर रो उठा
लेने को बदला दुश्मन से
एक राष्ट्रपिता अब जग उठा।
चीत्कार सुनी जब बेटी की
हर बाबुल का तन मन रोया
वीभत्स दृश्य को देख देख
भारत का हर बच्चा रोया
लेने को बदला बहन पिता का
इक भाई चैन से सो न सका
नापाक इरादे दुश्मन के
फिर आधी रात को जला दिए
एक बेटी के सिन्दूर की खातिर
जाने कितने दुश्मन फिर मिटा दिए।
देने को साथ बहन का फिर
सरहद पर हर भाई बैठा
और आसमान से बहनों ने
भारत का परचम लहराया
अब दहल उठा दिल दुश्मन का
और कांप उठी उसकी काया
जब लेने बदला बेटी का
पूरा भारत इक जुट आया
अब नहीं सहेंगे वार कोई
यह दुश्मन देश को धमकाया
लेने को हर वार का बदला
एक राष्ट्रपिता अब आगे आया।
